Friday, November 15, 2024
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राजस्थान इतिहास के प्रमुख स्त्रोत – राजस्थान का इतिहास

राजस्थान इतिहास के प्रमुख स्त्रोत (Rajasthan Itihas ke Pramukh Strot) :- नमस्कार दोस्तों आज इस पोस्ट के माध्यम से हम बात करने वाले है राजस्थान जीके के महत्वपूर्ण टॉपिक राजस्थान इतिहास के प्रमुख स्त्रोत (Rajasthan Itihas ke Pramukh Strot) के बारे में। Rajasthan Itihas ke Pramukh Strot राजस्थान में होने वाली विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षा जैसे B.ed,BSTC,Rajasthan Police,RSSC Clerk, Si, Police, Canal Patwari, Patwari, Gram Sachiv and Group D, Rajasthan High Court Group D Exam 2020 के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है । History of Rajasthan से संबंधित एक या दो नम्बर के प्रश्न जरूर पूछे जाते है। राजस्थान इतिहास के प्रमुख स्त्रोत से संबंधित जितने भी प्रश्न बनते है उनको ध्यान से पढ़े ताकि जब भी परीक्षा में History of Rajasthan से संबंधित कोई प्रश्न आये तो आपके कोई भी प्रश्न न छूटे।

राजस्थान इतिहास के प्रमुख स्त्रोत – शिलालेख

राजस्थान में प्राचीन दुर्गों, मंदिरों, सरोवरों, बावड़ियों एवं महत्वपूर्ण भवनों की दीवारों, देव प्रतिमाओं, लाटों एवं विजय स्तंभों आदि पर राजाओं, दानवीरों, सेठों और विजेता योद्धाओं द्वारा समय-समय पर उत्कीर्ण करवाये गये शिलालेख मिलते हैं। ये लाखों की संख्या में हैं। इनमें से कुछ प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण शिलालेखों की जानकारी यहाँ दी जा रही है। अशोक के शिलालेख खरोष्ठी लिपि एवं ब्राह्मी भाषा में हैं। उसके बाद के शिलालेख संस्कृत एवं राजस्थानी भाषा में हैं। मुस्लिम शासकों के शिलालेख फारसी भाषा एवं अरबी लिपि में मिलते हैं।

बिजौलिया शिलालेख

  • 1170 ईं. का यह शिलालेख जेन श्रावक लोलक द्वारा बिजौलिया के पार्श्वनाथ मंदिर के पास एक चट्टान पर उल्कीर्ण करवाया गया ।
  • इस शिलालेख का रचयिता गुणभद्ग था ।
  • इसमें सांभर व अजमेर चौहानों को चट्टान वत्स गोत्र ब्राह्मण बताते हुए वंशावली दी गई ।

मानमोरी का शिलालेख

  • इस शिलालेख में अमृत मंथन का उल्लेख है ।
  • यह मान सरोवर झील ( चित्तौड़गढ़ ) के तट पर एक स्तम्भ पर उत्कीर्ण था
  • कॉल जेम्स टॉड ने इंग्लैण्ड जाते समय इसे समुद्र में फेंक दिया था ।

सांमोली शिलालेख

  • यह अभिलेख 646 ईं के गुहिल शासक शिलादित्य के समय का है ।
  • सांमोली ( भोमट उदयपुर) लेख में मेवाड के गुहिल वंश के बारे में जानकारी मिलती है ।

कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति

  • इस प्रशस्ति मे गुहिल वंश के बप्पा रावल से लेकर कुम्भा तक की विस्तृत जीवनी का वर्णन है ।
  • यह चित्तौड़गढ़ के किले में उत्कीर्ण है ।
  • इसमें कुम्भा को विजयो तथा उसके प्रशस्तिकार महेश भट्ट का भी वर्णन है ।
  • इस प्रशस्ति को दिसम्बर 1460 में कुम्भा के समय उत्कीर्ण करवाया गया ।

राज प्रशस्ति

  • 1676 ईं में महाराजा राजसिंह द्वारा राजसमन्द झील की नौ चौकी को माल पर 25 काले पत्थरों पर संस्कृत में उत्कीर्ण करवाईं गई ।
  • इसमें राजसिंह का विस्तार पूर्वक वर्णन अमरसिंह द्वारा मुगलों से की गई । संधि का उल्लेख तथा बप्पा रावल से लेकर राजसिंह की उपलब्धियों का वर्णन है ।
  • यह संसार का सबसे बढा  शिलालेख है ।

श्रृंगी ऋषि का लेख

  • यह लेख राणा मोकल के समय का है ।
  • एकलिंगजी से कुछ दूरी पर श्रृंगी ऋषि नामक स्थान पर स्थित है ।
  • इसमें मोकल द्वारा कुण्ड बनाने और उसके वंश का वर्णन है ।

रणकपुर प्रशस्ति

  • इसमें मेवाड के राजवंश धरणक सेठ के वंश एवं उसके शिल्पी का परिचय दिया गया है ।
  • इसमें कुम्भा की विजयी का वर्णन हैं तथा बप्पा एवं कालभोज को अलगअलग बताया गया है ।
  • इसे 1439 ईं में रणकपुर के चौमुखा मंदिर पर उत्कीर्ण करवाया गया ।

घोसुण्डी शिलालेख

  • यह शिलालेख नगर ( चित्तौड़गढ़ ) के निकट घोसुण्डी गाँव में प्राप्त हुआ ।
  • इस शिलालेख मे गज वंश के सर्वतात द्वारा अश्वमेध यज्ञ करने का वर्णन मिलता है ।

सच्चिया माता की प्रशस्ति

  • सच्चिया माता का मंदिर ओसिया (जोधपुर) में है ।
  • इस शिलालेख पर कल्हण एवं कीर्तिपाल का वर्णन है ।

डूंगरपुर की प्रशस्ति

  • उपरगाँव (डूंगरपुर) में इसे 1404 ईं में संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण करवाया गया ।
  • इसमें वागड के राजवंशों के इतिहास का वर्णन है ।

कुंम्भलगढ़ प्रशस्ति / शिलालेख

  • 1460 ईं के मास कुम्भलगढ़ में प्राप्त हुआ ।
  • यह प्रशस्ति कुम्भ श्याम मंदिर (कुंम्भलगढ़) में लगाई हुई है ।
  • यह 5 शिलाओं में उत्कीर्ण है ।
  • कुंम्भश्याम मंदिर को अब मामदेव मंदिर के नाम से जाना जाता है ।
  • इसमें गुहिलवंश का विवरण तथा महाराणा कुम्भा को उपलब्धियों का वर्णन मिलता है ।

हर्षनाथ की प्रशस्ति

  • इसमें हर्षनाथ (सीकर) मंदिर का निर्माण अल्लट द्वारा करवाये जाने का उल्लेख है ।
  • यह प्रशस्ति 973 ईं की है । इसमें चौहानों का वंशक्रम दिया हुआ है ।

अपराजिता का शिलालेख

  • 661 ईं में यह नागदा गाँव के कुंडेश्वर मंदिर में मिला ।
  • इसमें गुहिल शासक अपराजिता की विजयो एवं प्रताप का वर्णन हे ।

नगरी का शिलालेख

  • यह शिलालेख डाँ. भंडारकर को नगरी में प्राप्त हुआ ।
  • इसमें नागरी लिपि में संस्कृत भाषा में 424 ईं में विष्णु पूजा का उल्लेख हैं ।

मण्डोर का शिलालेख

  • मण्डोर (जोधपुर) की बावडी पर लिखा यह शिलालेख 685 ईं के आसपास मिला ।
  • इसमें विष्णु एवं शिव की पूजा पर प्रकाश पड़ता है ।

नांदसा यूप स्तम्भ लेख

  • इस स्तम्भ लेख की स्थापना सोग ने की ।
  • 225 ई. का यह लेख भीलवाडा के निकट नांदसा स्थान पर एक सरोवर में प्राप्त गोल स्तम्भ पर उत्कीर्ण है ।

कणसवा का लेख

  • यह 738 ई. का शिलालेख कोटा के निकट मिला है ।
  • इसमें धवल नामक मौर्यवंशी राजा का उल्लेख हैं ।

चाकसू की प्रशस्ति

  • 813 ई. का यह शिलालेख चाकसू ( जयपुर ) में मिला हैं ।
  • इसमें गुहिल वंशीय राजाओं की वंशावली दी गई है ।

चित्तौड़गढ़ का शिलालेख

  • 1278 ई. के इस लेख में उस समय के गुहिल शासकों की धार्मिक सहिष्णुता की नीति की बताया गया है ।

जैन कीर्ति स्तम्भ का लेख

  • यह शिलालेख 13वीं सदी का है ।
  • चित्तौड़गढ़ के जैन कीर्ति स्तंभ में उत्कीर्ण तीन अभिलेखों का स्थापन करता जीजा था ।
  • इसमें जीजा के वंश तथा मंदिर का उल्लेख मिलता हैं ।

नाथ प्रशस्ति

  • इस प्रशस्ति में नागदा नगर एवं बप्पा, गुहिल तथा नरवाहन राजाओं का वर्णन है ।
  • 971 ई. का यह लेख लकुलिश मंदिर से प्राप्त हुआ है ।

बीकानेर दुर्ग की प्रशस्ति

  • इस प्रशस्ति का रचयिता जइता नामक जैन मुनि है ।
  • इस प्रशस्ति में चीका से लेकर राव रायसिंह तक के शासकों की उपलब्धियों एव विजयी का वर्णन है ।
  • रायसिंह के समय से यह बीकानेर के दुर्ग के मुख्य द्वार पर स्थित है ।

सिवाणा का लेख

  • 1537 ईं में प्राप्त इस लेख में राव मालदेव (जोधपुर) की सिवाना विजय का उल्लेख है ।

किरांडू का लेख

  • किरांडू (बाडमेर) में प्राप्त इस शिलालेख में परमारों को उत्पस्ति ऋषि वशिष्ठ के आबू यज्ञ से बताईं है ।

चीरवा का शिलालेख 1273 ईं (उदयपुर)

  • यह चीरवा गाँव में एक नये मंदिर के बाहरी द्वार पर लगा हुआ है ।
  • इसमें 36 पंक्तियों में 51 श्लोक नागरी लिपि में लिखा है ।
  • इस लेख में गुहिल वंशीय बप्पा के वंशधर पदम सिंह जैत्र सिंह, तेज सिंह और समर सिंह की उपलब्धियों का उल्लेख हैं।
  • इसमें पर्वतीय भागों के गाँव बसाने तथा मंदिरों, वृक्षावल्ली और घाटियों का उल्लेख किया गया ।
  • इसमें एकलिंगजी के अधिष्ठत्ता पाशुपत योगियों के अग्रणी शिवराशि का भी वर्णन मिलता है ।
  • इस को रतन भसूरि ने चितोड़ में रहते हुए रचना की तथा पार्श्वचंद ने इसे लिखा था ।
  • कैलिसिंह ने इसे खोदा था ।
  • इस लेख का उपयोग 13र्वी सदी की राजनीतिक आर्थिक, सामाजिक तथा धार्मिक स्थिति की जानकारी के लिए किया जाता है ।

सिक्के

(Coins) सिक्को के अध्ययन न्यूमिसमेटिक्स कहा जाता है। भारतीय इतिहास सिंधुघाटी सभ्यता और वैदिक सभ्यता में सिक्को का व्यापार वस्तुविनियम पर आधारित था।

  • भारत में सर्वप्रथम सिक्को का प्रचलन 2500 वर्ष पूर्व हुआ ये मुद्राऐं खुदाई के दोरान खण्डित अवस्था में प्राप्त हुई है।
  • अतः इन्हें आहत मुद्राएं कहा जाता है। इन पर विशेष चिन्ह बने हुए है। अतः इन्हें पंचमार्क सिक्के भी कहते है। ये मुद्राऐं वर्गाकार, आयाताकार व वृत्ताकार रूप में है।
  • कोटिल्य के अर्थशास्त्र में इन्हें पण/कार्षापण की संज्ञा दी गई ये अधिकांशतः चांदी धातु के थे।

राजस्थान के चौहान वंश ने राज्य में सर्वप्रथम अपनी मुद्राऐं जारी की। उनमें द्रम्म और विशोपक तांबे के रूपक चांदी के दिनार सोने का सिक्का था।

  • मध्य युग में अकबर ने राजस्थान में सिक्का ए एलची जारी किया। अकबर के आमेर से अच्छे संबंध थें अतः वहां सर्व प्रथम टकसाल खोलने की अनुमति प्रदान की गई।
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