Monday, November 18, 2024
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हिन्दी वर्ण विचार स्वर व्यंजन और इनके उच्चारण स्थान: Hindi Varna Vichar full Information

हिन्दी वर्ण विचार (Hindi Varna Vichar) :- नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट के माधयम से आज हम बात करने वाले है हिंदी व्याकरण (Hindi Vyakran) के एक बहुत अच्छे टॉपिक के बारे में जो है हिन्दी वर्ण विचार (Hindi Varn Vichar)। इसमें हम पढ़ेंगे की हिन्दी वर्ण विचार क्या होते है (Hindi Varn Vichar kya hote hai),हिन्दी वर्ण विचार के कितने भेद है (Hindi Varn Vichar ke kitne bhed hai) और भी महत्वपूर्ण जानकारी जो परीक्षोपयोगी होती है।

भाषा/Bhasha

bhasha संप्रेषण का माध्यम होती है,इसकी सहायता से हम अपने विचारों, भावो एवं भावनाओं को व्यक्त करते हैं। भाषा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की भाष धातु से हुई है जिसका अर्थ है – वाणी प्रकट करना।

भाषा के अंग / वर्ण विचार Hindi Varna Vichar

किसी bhasha के व्याकरण ग्रंथ में इन तीन तत्त्वों की विशेष एवं आवश्यक रूप से चर्चा/विवेचना की जाती है –

  • वर्ण  :- वर्ण या अक्षर भाषा की सबसे न्यूनतम इकाई होती है अर्थात वह छोटी से छोटी ध्वनि जिसके ओर टुकड़े नहीं किए जा सकते वर्ण कहलाते हैं।
  • शब्द :- यह भाषा की अर्थ पूर्ण इकाई है। इसका निर्माण वर्णों से होता है।
  • वाक्य :- शब्दों के सही क्रम से वाक्य निर्माण होता है यह किसी को किसी भाव को स्पष्ट रूप में अभिव्यक्त सकते हैं।

व्याकरण

व्याकरण के अंतर्गत भाषाओं को शुद्ध एवं सर्वमान्य मानक रूप में बोलना, समझना, लिखना और पढ़ना सीखते हैं।

लिपि

धव्नियो को अंकित करने के लिए कुछ चिह्न निर्धारित किए जाते हैं उन्हें लिपि कहा जाता है। हिंदी संस्कृत मराठी वर नेपाली भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। देवनागरी का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है।

वर्णमाला

वर्णों के समुदाय को कहते हैं अर्थात विभिन्न प्रकार के वर्णों को एक साथ क्रमबद्ध करके लिखना और उन्हें एक समूह में संगठित करना ही वर्णमाला कहलाता है।वर्णमाला के वर्ण आपस में मिलकर शब्दों का निर्माण और शब्द आपस में मिलकर वाक्यों का निर्माण करते हैं।देवनागरी की वर्णमाला में अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ लृ् ए ऐ ओ औ अं अः  क  ख  ग  घ  ङ। च  छ  ज  झ  ञ। ट  ठ  ड  ढ  ण। त  थ  द  ध  न। प  फ  ब  भ  म। य  र  ल  व। श  ष  स  ह को ‘देवनागरी वर्णमाला’ कहते हैं और a b c d … z को रोमन वर्णमाला (रोमन अल्फाबेट) कहते हैं। इसमें 48 वर्ण होते हैं और 11 स्वर होते हैं। व्यंजनों की संख्या 33 होती है जबकि कुल व्यंजन 35 होते हैं। दो उच्छिप्त व्यंजन एवं दो अयोगवाह होते हैं।

वर्णमाला के भेद

वर्णमाला के दो भेद हैं –

  • स्वर।
  • व्यंजन।

स्वर/Svar/Vowel

जिन वर्णों के उच्चारण में वायु निर्बाध गति से आधारित बिना किसी रूकावट के मुख से निकलती है उन्हें स्वर कहते हैं। स्वरों के उच्चारण में किसी अन्य वर्ण की सहायता नहीं लेनी पड़ती है। हिंदी में स्वरों की संख्या 11 है।

स्वर के भेद / Type of Vowel

मात्रा के आधार पर हिंदी में स्वर के दो भेद होते है। ये निम्नलिखित है –

  • ह्रस्व स्वर।
  • दीर्घ स्वर।

ह्रस्व स्वर

जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता है अथार्त जिन स्वरों के उच्चारण में कम से कम अथार्त एक मात्रा का समय लगता है उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। ये चार होते हैं। ये निम्नलिखित है –

ह्रस्व स्वरअ, इ, उ, ऋ

दीर्घ स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना अथार्त दो मात्रा का समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। ये सात होते हैं। ये निम्नलिखित है –

दीर्घ स्वरआ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ

व्यंजन /Vaynjan/Consonant

जिन वर्णों के उच्चारण में वायु कुछ बाधित होकर अर्थात रुकावट के साथ मुख से निकलती है उन्हें व्यंजन कहते हैं अर्थात जिन वर्णों का उच्चारण बिना किसी दुसरे वर्णों के नहीं हो सकता उन्हें व्यंजन कहते हैं । हिंदी वर्णमाला में परंपरागत रूप से व्यंजनों की संख्या 33 मानी जाती है। द्विगुण व्यंजन ड़, ढ़ को जोड़ देने पर इनकी संख्या 35 हो जाती है।

व्यंजन के भेद

  • स्पर्श व्यंजन (Sparsh Vyanjan)
  • अन्तस्थ व्यंजन (Antasth Vyanjan)
  • ऊष्म व्यंजन (Ushm Vyanjan)
  • उच्छिप्त व्यंजन (Uchchhipt Vyanjan)
  • संयुक्त व्यंजन (Sanyukt Vyanjan)
  • नासिक्य व्यंजन (Nasiky Vyanjan )

स्पर्श व्यंजन (Sparsh Vyanjan)/वर्गीय /स्पृष्ट व्यंजन

जो व्यंजन कंठ तालु मूर्धा दांत ओष्ट आदि उच्चारण अवयवों के स्पर्श से उच्चरित होते हैं उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं। इनकी संख्या 25 है यानी क से लेकर म तक। ये निम्नलिखित है –

कवर्गक ख ग घ ङ
चवर्गच छ ज झ ञ
टवर्गट ठ ड ढ ण (ड़ ढ़ )
तवर्गत थ द ध न
पवर्गप फ ब भ म

अन्तस्थ व्यंजन (Antasth Vyanjan)

जो व्यंजन जीभ, तालू, दांत, दांतो को परस्पर हटाने से उच्चारित होते हैं किंतु कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं हो पाता उन्हें अंतस्थ व्यंजन कहते हैं ये व्यंजन स्पर्श व्यंजनों और ऊष्म व्यंजनों के मध्य में स्थित है इसलिए भी इन्हें अंतस्थ व्यंजन कहा जाता है अर्थात ऐसे व्यंजन जो उच्चारण करते समय हमारे मुख के भीतर ही रह जाते हैं, वे व्यंजन अंतःस्थ व्यंजन कहलाते हैं। इनकों अद्र्ध स्वर भी कहा जाता है। ये चार है। ये निम्नलिखित है –

अन्तस्थ व्यंजनय र ल व

ऊष्म व्यंजन (Ushm Vyanjan) / संघर्षी व्यंजन

जिन वर्णों के उच्चारण में एक विशेष प्रकार का घर्षण होता है और ऊष्म (गर्म) वायु मुख से निकलती है उन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं। इनके उच्चारण में श्वास की प्रबलता रहती है । ये चार प्रकार के होते हैं। ये निम्नलिखित है –

ऊष्म व्यंजनश ष स ह

संयुक्त व्यंजन (Sanyukt Vyanjan)

जो व्यंजन दो व्यंजनों के मेल से बने हो उन्हें संयुक्त व्यंजन कहते हैं।  संयुक्त व्यंजन में जो पहला व्यंजन होता है वो हमेशा स्वर रहित होता है और इसके विपरीत दूसरा व्यंजन हमेशा स्वर सहित होता है। ये चार प्रकार के होते हैं। ये निम्नलिखित हैं –

संयुक्त व्यंजनक्ष, त्र, ज्ञ, श्र

उच्छिप्त व्यंजन (Uchchhipt Vyanjan) / ताड़नजात व्यंजन

जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा का अगर भाग मूर्धा को झटके से स्पर्श करके हट जाता है उन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं। ये निम्नलिखित है –

उत्क्षिप्त व्यंजनड़ ढ़

नासिक्य व्यंजन

नासिका से बोले जाने व्यंजनों को नासिक्य व्यंजन कहते हैं। ये 3 प्रकार के होते हैं। ये निम्नलिखित है –

नासिक्य व्यंजनन, म, ण

उच्चारण के अनुसार व्यंजन के भेद

उच्चारण के अनुसार व्यंजनों को दो भागों में बांटा गया हैं।

  • अल्पप्राण व्यंजन
  • महाप्राण व्यंजन

अल्पप्राण व्यंजन

ऐसे व्यंजन जिनको बोलने में कम समय लगता है और बोलते समय मुख से कम वायु निकलती है उन्हें अल्पप्राण व्यंजन (Alppran) कहते हैं। इनकी संख्या 20 होती है।

(वर्ग का 1,3,5 अक्षर – अन्तस्थ – द्विगुण या उच्छिप्त)

क वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवा अक्षरक ग ङ
च वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवा अक्षरच ज ञ
ट वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवा अक्षरट ड ण
त वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवा अक्षरत द न
प वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवा अक्षरप ब म
चारों अन्तस्थ व्यंजनय र ल व
एक उच्छिप्त व्यंजन

महाप्राण व्यंजन

ऐसे व्यंजन जिनको बोलने में अधिक प्रत्यन करना पड़ता है और बोलते समय मुख से अधिक वायु निकलती है। उन्हें महाप्राण व्यंजन (Mahapran) कहते हैं। इनकी संख्या 15 होती है।

(वर्ग का 2, 4 अक्षर – उष्म व्यंजन – एक उच्छिप्त व्यंजन)

क वर्ण का दूसरा, चौथा अक्षरख घ
च वर्ण का दूसरा, चौथा अक्षरछ झ
ट वर्ण का दूसरा, चौथा अक्षरठ ढ
त वर्ण का दूसरा, चौथा अक्षरथ ध
प वर्ण का दूसरा, चौथा अक्षरफ भ
चारों उष्म व्यंजनश ष स ह
एक उच्छिप्त व्यंजनढ़

कम्पन के आधार पर वर्णो के भेद

कम्पन के आधार पर वर्णो के दो भेद होते हैं।

  • अघोष  (Aghosh.)
  • सघोष (Sghosh )

अघोष

वह ध्वनियाँ (विशेषकर व्यंजन) होती हैं जिनमें स्वर-रज्जु में कम्पन नहीं होता है। इनकी संख्या 13 होती है
क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, श, ष, स

सघोष व्यंजन

वह ध्वनियाँ होती हैं जिनमें स्वर-रज्जु में कम्पन होता है।इनकी संख्या 31 होती है। इसमें सभी स्वर अ से ओ तक और
ग, घ, ङ
ज, झ, ञ
ड, ढ, ण
द, ध, न
ब, भ, म
य, र, ल, व, ह

अयोगवाह

अनुस्वार और विसर्ग को अयोगवाह कहते हैं,क्योंकि न तो स्वर हैं न ही व्यंजन परन्तु ये स्वर के सहारे चलते हैं. इनका प्रयोग स्वर और व्यंजन दोनों के साथ होता है। ये 2 प्रकार के होते हैं। ये निम्नलिखित है –

अयोगवाहअनुस्वार (अं) , विसर्ग (अः)

वर्गों के उच्चारण स्थान

भाषा को शुद्ध रूप में बोलने और समझने के लिए विभिन्न वर्गों के उच्चारण स्थानों को जानना आवश्यक है।

क्र.सं.वर्णउच्चारण स्थानवर्ण ध्वनि का नाम
1.अ, आ, क वर्ग और विसर्गकंठ कोमल तालुकंठ्य
2.इ, ई, च वर्ग, य, शतालुतालव्य
3.ऋ, ट वर्ग, र, षमूद्धमूर्द्धन्य
4.लृ, त वर्ग, ल, सदन्तदन्त्य
5.उ, ऊ, प वर्गओष्ठओष्ठ्य
6.अं, ङ, ञ, ण, न्, म्नासिकानासिक्य
7.ए, ऐकंठ तालुकंठ – तालव्य
8.ओ, औकंठ ओष्ठकठोष्ठ्य
9.दन्त ओष्ठदन्तोष्ठ्य
10.स्वर यन्त्रअलिजिह्वा

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