राजस्थान के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी :- नमस्कार दोस्तों आज इस पोस्ट के माध्यम से हम बात करने वाले है राजस्थान जीके के महत्वपूर्ण टॉपिक राजस्थान के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी (Rajasthan ke Parmukh Savtantrta sainani) के बारे में। राजस्थान के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी,राजस्थान म होने वाली विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षा जैसे RSSC Clerk, Si, Police, Canal Patwari, Patwari, Gram Sachiv and Group D Rajasthan High Court Group D Exam 2020 के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है । राजस्थान के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी से संबंधित एक या दो नो के प्रश्न जरूर पूछे जाते है। राजस्थान के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी से संबंधित जितने भी प्रश्न बनते है उनको ध्यान से पढ़े ताकि जब भी परीक्षा में राजस्थान के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी राजस्थान के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी से संबंधित कोई प्रश्न आये तो आपके कोई भी प्रश्न न छूटे।
राजस्थान के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी
इस पोस्ट के माध्यम से राजस्थान के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी (नानक भील, साधू सीताराम दास , विजय सिंह पाथिक, जयनारायण व्यास, बालमुकुन्द बिस्सा, सेठ दामोदर दास राठी, गोपाल सिंह, मोतीलाल तेजावत, अर्जुन लाल सेठी, जोरावर सिंह बारहठ, प्रताप सिंह बारहठ, केसरी सिंह बारहठ, जमना लाल बजाज, भोगीलाल पंडया, गोकुल भट्ट, रामनारायण चौधरी, हीरालाल शास्त्री, हरी भाऊ उपाध्याय) के बारे में विस्तारित रूप से पढ़ेंगे। तो आइये देखते है राजस्थान के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी के बारे में विस्तृत जानकारी –
अर्जुन लाल सेठी
- जन्म – 9 सितम्बर, 1880 जयपुर।
- जयपुर की महाराजा कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली।
- जयपुर में जन चेतना का सूत्रपात अर्जुन लाल सेठी के द्वारा किया गया। इन्हें राजपूताने में राष्ट्रीयता का जन्मदाता माना जाता है।
- 20वीं शताब्दी के प्रांरभिक वर्षो में राजस्थान में क्रांतिकारी गतिविधियों के सृजन का श्रेय सेठी जी को दिया जाता है।
- चौमू का जिलाधीश बना परन्तु बाद उन्होंने यह कहते हुए नौकरी छोड़ दी ’’अगर अर्जुन लाल नौकरी करेगा तो अंग्रेजों के भारत से बाहर कौन निकालेगा?’’ तथा जिलाधीश का पद त्याग दिया।
- 1905 में जयपुर में जैनशिक्षा प्रचारक समिति की स्थापना की।
- 1907 में सेठीजी ने जैनशिक्षा सोसायटी की स्थापना अजमेर में की थी।
- 1908 में इसका कार्यालय अजमेर से जयपुर लाया गया तथा इसका नाम जैन वर्धन पाठशाला किया गया, जिसमें प्रमुखतः क्रान्तिकारियों को शिक्षा दी जाती थी। जोरावरसिंह बारहठ व प्रतापसिंह बारहठ ने यहीं शिक्षा प्राप्त की थी। इस पाठशाला में क्रान्तिकारियों को प्रशिक्षण उतरप्रदेश के रासबिहारी बोस व दिल्ली के अमीरचन्द देते थे।
- सेठी जी द्वारा स्थापित जैन शिक्षण संस्था का उद्देश्य जैन धर्म का प्रचार करना नहीं था, वरन् यहाँ क्रांतिकारी युवाओं को प्रशिक्षण देना था।
- 1915 में सशस्त्र क्रांति की योजना के तहत सेठी जी को धन एकत्र करने का जिम्मा सौंपा गया था। इसी के तहत एक बार सेठी जी मोतीचन्द व उसके अनुयायियों ने बिहार के आरा जिले के निजाम नामक स्थान के एक जैन संत को लूटने की योजना बनाई जिसमें उस जैन संत की हत्या हो गई।
- इस हत्याकाण्ड़ के कारण सेठजी को 7 वर्ष की सजा सुनाकर इन्हे दक्षिण में वैल्लूर (तमिलनाडू) जेल भेज दिया गया।
- 1920 में रिहा होकर महाराष्ट्र पहुँचे। वहाँ बाल गंगाधर तिलक ने कहा – ’’सेठ जी जैसे देश भक्त के कदमों का महाराष्ट्र की धरती पर आना एवं उनका इस तरह स्वागत होना मराठों के गौरव की बात है’’
- महाराष्ट्र के बाद सेठी जी गुजरात गए जहाँ वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में उनका स्वागत हुआ, तथा सेठी जी का जुलुस निकाला जाने लगा तो वहाँ के छात्रों ने घोड़ों के स्थान पर स्वंय जूतकर सेठी जी की गाड़ी को पूरे शहर में घूमाया। बारदोली से अजमेर आकर सेठी जी ने इसे अपनी कर्मस्थली का प्रमुख केन्द्र बनाया।
- 1922-23 में महात्मा गाँधी जी के कहने पर अजमेर क्षेत्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया।
- 1924 में अजमेर कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के दौरान हरिभाऊ उपाध्याय ने अर्जुन लाल सेठी को हरा दिया तथा इस हार के लिए अर्जुन लाल सेठी ने महात्मा गाँधी को जिम्मेदार ठहराया।
- 1934 में गाँधी अजमेर आये तथा स्वयं सेठीजी से मिलने उसके निवास स्थान गये।
- अध्यक्ष पद के चुनाव हार जाने के बाद से सेठी जी ने राजनैतिक गतिविधियों से सन्यास ले लिया तथा साम्प्रदायिक सद्भावना के कार्य करने लगे। अजमेर में दरगाह में बच्चों को अरबी/फारसी पढ़ाते हुए 23 दिसम्बर, 1941 को इनका देहान्त हो गया।
- लोगों ने इन्हें मुसलमान समझकर दफना दिया लेखक सुन्दर लाल ने अपनी पुस्तक भारत में अंग्रेजी राज में सेठी जी के बारे कहा है कि राजस्थान का सच्चा सपूत वह क्रांतिकारी जिसने अपने दीपक की लौ से हिन्दुस्तान की क्रांति को चमकाया आज स्वयं बुझ गया।
अमरचन्द बांठिया
- अमरचन्द बांठिया का जन्म सन् 1771 ई. में बीकानेर में हुआ। इसके पिता व्यापारी थे तथा उनका व्यापार स्थल ग्वालियर था। ये पिताजी के साथ ग्वालियर चले गये।
- ग्वालियर राजपरिवार ने इन्हें नगर सेठ की उपाधि देते हुए राजकोष का प्रभारी बना दिया।
- सन् 1857 की क्रांति के समय रानी लक्ष्मी बाई और ताँत्या टोपे को धन की आवश्यकता पड़ी तो अमर चन्द बांठिया ने ग्वालियर का राजकोष व अपनी निजी सम्पति उन्हें भेट कर दी। अमर चन्द बांठिया को 1857 के क्रांति का भामाशाह कहते है।
- स्वतंत्रता सेनानियों को आर्थिक सहायता का पता अंग्रेजों को चल गया जिस कारण अंग्रेजों ने बांठिया को 22 जून, 1857 को ग्वालियर में ही पेड़ पर लटका कर फाँसी दे दी। अतः इसे राजस्थान का मंगल पाण्डे कहते हैं। (यह राजस्थान का 1857 की क्रांति में प्रथम शहीद था) आज भी बांठिया जी की मूर्ति उस पेड़ के नीचे स्थापित हैं।
हीरालाल शास्त्री
- हीरालाल शास्त्री का जन्म 24 नवम्बर, 1899 में जोबनेर (जयपुर) में श्री नारायण जोशी और ममता जोशी के यहाँ पुरोहित परिवार में हुआ।
- शास्त्री ने 10वीं कक्षा पास कर जयपुर से बी. ए. की परीक्षा उतीर्ण की तथा इसने 6 वर्षों तक सरकारी नौकरी की तथा बाद अर्जुन लाल सेठी के सम्पर्क में आने के बाद दिसम्बर, 1927 को राजकीय सेवा से त्याग पत्र दे दिया और स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ गये।
- 1930 में शास्त्री जी ने प्रलय प्रतीक्षा नमो नमः नामक गीत लिखा जो बहुत उस समय बहुत लोक प्रिय हुआ।
- 1936 में जीवन कुटीर नामक एक रचनात्मक संस्था जिसकी निवाई कस्बे में स्थापना की जो कि अपनी पुत्री शान्ता बाई के नाम से थी। इस संस्था के माध्यम से वस्त्र स्वावलम्बन की दिशा में महत्वपूर्ण शिक्षा दी जाती थी। वर्तमान में यह संस्था वनस्थली विद्या पीठ के नाम से विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त महिला शिक्षा का एक उत्कृष्ट संस्थान है, इस संस्था में देश की ही नहीं अपितु विदेशी लड़कियाँ भी यहाँ शिक्षा प्राप्त करती है। हीरालाल शास्त्री की पत्नी श्रीमती रतन शास्त्री ने वर्षों तक इस वनस्थली विद्यापीठ की संचालिका के रूप में कार्य किया।
- श्रीमती रतन शास्त्री ने जयपुर राज्य के सत्याग्रह के समय स्वतंत्रता सेनानियों का कुशल नेतृत्व किया। 1939 में जयपुर प्रजामण्डल के सत्याग्रह में सक्रिय भूमिका निभाई। पद्मश्री एवं पद्मभूषण से सम्मानित होने वाली राज्य की प्रथम महिला है ।
- जमनालाल बजाज के निवेदन से शास्त्री जी ने दूसरी बार जयपुर प्रजामण्डल की स्थापना की।
- 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय शास्त्री व जयपुर राज्य की सरकार के मध्य जैन्टलमेन्स एग्रीमेन्ट हुआ जिसके कारण शास्त्री के नेतृत्व में जयपुर प्रजामण्डल ने भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग नहीं लिया ।
- 30 मार्च, 1949 (राजस्थान दिवस के दिन) को शास्त्री जी राजस्थान के प्रथम मनोनित मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री पद की शपथ राजस्थान के राजप्रमुख सवाई मानसिंह द्वितीय ने दिलाई।
- शास्त्री जी की आत्म कथा प्रत्यक्ष जीवन शास्त्र नाम से प्रकाशित हुई।
- 16 दिसम्बर, 1974 को हीरालाल शास्त्री जी की मृत्यु हो गई।
जयनाराण व्यास
- जयनारायण व्यास का जन्म 18 फरवरी, 1899 को जोधपुर के पुष्करणा ब्राह्मण परिवार में हुआ।
- जयनारायण व्यास राजस्थान के प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने सामन्त शाही के विरूद्ध आवाज उठाई। जयनारायण व्यास जी के उदार चरित्र के कारण ये मास्साब, राजस्थान का लोकनायक, शेर-ए-राजस्थान, लक्कड़ और फक्कड़ तथा धुन का धनी आदि नामों से जाने जाते थे।
- जालौर में प्रचलित ढोल नृत्य को सर्वप्रथम जयनारायण व्यास गुमनामी से प्रकाश में लायें।
- राजस्थानी को प्रान्तीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए राजस्थानी आंदोलन क्या, क्यों और क्यों नहीं नामक एक पुस्तक का प्रकाशन किया।
- 3 जुलाई, 1974 को भारत सरकार ने उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया।
- ब्यावर से व्यासजी ने राजस्थानी भाषा के प्रथम राजनैतिक समाचार पत्र आगी बाण/अग्नि बाण प्रकाशित किया।
- 1927 में व्यासजी ने तरूण राजस्थान व 1936 में बम्बई से अखण्ड़ भारत नामक पत्र निकाले। तथा व्यास जी ने पीप नामक अंग्रेजी की पक्षिक पत्रिका का भी सम्पादन किया ।
- 1948 तक व्यासजी जोधपुर रियासत सरकार के मंत्री रहें। यह राजस्थान के एकमात्र मनोनित व निर्वाचित मुख्यमंत्री बने। जयनारायण जी व्यास के नाम से जोधपुर विश्वविद्यालय का नाम जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय रखा गया है।
सेठ दामोदार दास राठी
- दामोदर दास राठी का जन्म 8 फरवरी, 1884 को पोकरण (जैसलमेर) में सेठ खींवराज राठी के घर हुआ। राठी के पिता व्यापार के सिलसिले ब्यावर आ गये तथा राठी जी भी अपने पिता के साथ ब्यावर आ गये।
- राठी के पिता जी ने ब्यावर में एक रूई की मील स्थापित की। लेकिन राठी जी का सम्पर्क तो क्रांतिकारियों से था तथा व्यापार में अधिक रूचि नहीं थी।
- दामोदर दास ने क्रांतिकारियों की खूब आर्थिक मदद की। 21 फरवरी, 1915 की सशस्त्र क्रांति के लिए इन्हीं के आर्थिक सहयोग से गोपाल सिंह खरवा ने करीब 3000 सशस्त्र क्रांतिकारियों की सेना तैयार की अतः दामोदर दास राठी सशस्त्र क्रांति के भामाशाह के नाम से भी जाने जाते है।
- ब्यावर मे सनातन धर्म स्कूल, कॉलेज तथा नवभारत विद्यालय की स्थापना का श्रेय श्री दामोदर दास राठी को जाता है।
- दामोदर दास राठी ने 1916 में ब्यावर में होमरूल लीग की स्थापना की।
- 2 जनवरी, 1918 को 34 वर्ष की अल्पायु दामोदर दास राठी की मृत्यु हो गई।
जमनालाल बजाज
- जमनालाल बजाज का जन्म 4 नवम्बर, 1899 को सीकर जिले के काशी का बास नामक गाँव में हुआ। जमनालाल बजाज आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होते हुए भी एक क्रांतिकारी जीवन व्यतीत किया। जमनालाल बजाज अपने आप को महात्मा गाँधी जी का पुत्र ही मानते थे। अतः बजाज का गाँधी जी के पाँचवे पुत्र के रूप में भी जाना जाता है।
- 1920 में कांग्रेस के कलकता अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव पारित हुआ और प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों का साथ दिया इसलिए कारण इन्हें राय बहादुर की उपाधि दी। लेकिन असहयोग आन्दोलन के तहत इस उपाधि को वापस लौटाकर देशप्रेम का परिचय दिया ।
- 1921 में वर्धा (महाराष्ट्र) में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना कर विनोबा भावे को साबरमती से वर्धा ले आये। बजाज जी हिन्दी के प्रबल पक्षधर थे, हिन्दी को ईमान की भाषा कहते थे। राजस्थान केसरी, कर्मवीर प्रताप, त्याग भूमि आदि पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन में बजाज जी ने भरपुर आर्थिक सहयोग किया। बजाज जी ने दक्षिण भारत में हिन्दी का प्रचार के लिए राष्ट्र भाषा प्रचार समिति स्थापित की।
- जमनालाल बजाज स्वयं को गुलाम नम्बर चार कहते थे। वैसे भारतवर्ष में चार गुलाम होते है –
- पहला गुलाम – भारत, दूसरा गुलाम -देशी राजा, तीसरा गुलाम – सीकर, चौथा गुलाम – बजाज जी।
- 1927 में बजाज जी ने जयपुर में ’’चरखा संघ’’ की स्थापना कर बी. एस. देश पाण्डे को इसका कार्यभार सँभलवाया।
- 1938 में बजाज जी की अध्यक्षता में जयपुर प्रजामण्डल का पुनर्गठन किया गया।
- 1942 में महात्मा गाँधी जी ने गौ सेवा की जिम्मेदारी बजाज जी को सम्भलाई।
- 11 फरवरी, 1942 को जमना लाल बजाज जी की मृत्यु हो गई।
- 4 नवम्बर, 1970 को भारत सरकार द्वारा श्री बजाज जी की स्मृति में डाक टिकट जारी किया।
डूँगरजी – जवाहर जी
- डूँगरजी – जवाहरजी कच्छवाहा वंश के राजपूत थे। डूँगरजी व जवाहरजी आपस में काका-भतीजा लगते थे। इनका जन्म सीकर जिले के बठोठ-पाटोदा गाँव में हुआ। इन्होंने अंग्रेजों को देश से निकालने के लिए अंग्रेजी छावनियों को लूटना शुरू किया। एक बार उन्हें धन की आवश्यकता पड़ी तो रामगढ़ सेठ घुरसामल अणतमल की बाळद को लूटा था। ये लूटा हुआ धन पुष्कर झील के घाट पर गरीबों को बाँट दिया करते थे। इसलिए इन्हें गरीबों के लोकदेवता कहते हैं। रामगढ़ के सेठों ने इन्हें रोकने के लिए अंग्रेजों की मदद मांगी। डूँगर जी का सुसराल झाड़ावास गाँव में गौड़ राजपूतों के यहाँ था। भैरों सिंह जो डूँगरजी का साला था जो कि लालच में आकर झाड़ावास से ही सोते हुए डूँगरजी को गिरफ्तार करवा दिया तथा अंग्रेजों ने डूँगरजी को कैद कर आगरा के किले में भेज दिया।
- डूँगरजी के गिरफ्तार होने के 6 माह बाद ही भतीजे जवाहर जी ने इन्हें 31 दिसम्बर, 1846 को करणिया मीणा व लोटिया जाट के सहयोग से अंग्रेजों की कैद से मुक्त का दिया ।
- 18 जून, 1847 को डूँगरजी-जवाहरजी ने नसीराबाद छावनी पर आक्रमण कर 52 हजार रूपये और घोडे़ लूट लिये। अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने के लिए सम्पूर्ण शक्ति लगी दी।
- जवाहर जी बीकानेर के महाराजा रतनसिंह के पास चले गए जिन्होंने अंग्रेजों के दबाव के बावजूद जवाहर जी को सौंपने से इनकार कर दिया।
- डूँगरजी ने इस शर्त पर कि उन्हें जोधपुर किले में ही रखा जाए, जैसलमेर के गिरादड़ा गाँव में आत्मसमर्पण कर दिया। जहाँ जोधपुर के तख्त सिंह ने शरण दी।
केसरी सिंह बारहठ
- केसरी सिंह बारहठ का जन्म 21 नवम्बर, 1872 को भीलवाड़ा के शाहपुरा के समीप देवपुरा में हुआ इस गाँव को बारहठ जी का खेड़ा के नाम से जाना जाता है। इनका जन्म कृष्णसिंह जी बारहठ के घर हुआ। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा उदयपुर में हुई। केसरी सिंह बारहठ ने पहले मेवाड़ राज्य की सेवा की तथा बाद में वे कोटा राज्य की सेवा में रहें। ये भीलवाड़ा के डिंगल कवि तथा राजस्थान के महान देशभक्त थे।
- 1903 में लार्ड कर्जन ने एडवर्ड सप्तम के राज्यारोहण के अवसर पर दिल्ली में भारतीय राजाओं का दरबार आयोजित किया जिसमें उदयपुर के महाराणा फतेहसिंह को भी आमंत्रित किया गया। फतेहसिंह उस दरबार में भाग लेने के लिए दिल्ली जा रहे थे तो दिल्ली रेल्वे स्टेशन पर फतेहसिंह को बारहठ के द्वारा लिखे गए 13 सोरठों का एक पत्र मिला। इस पत्र मे महाराणा फतेहसिंह के पुरखों का यशोगान करते हुए फतेहसिंह को धिक्कारा गया था। इस पत्र को पढ़ने के बाद फतेह सिंह का स्वाभिमान जाग उठा और फतेह सिंह दिल्ली में रहते हुए दिल्ली दरबार में भाग नहीं लिया। केसरी सिंह द्वारा लिखित 13 सोरठों (डिंगल भाषा) की रचना को ही ’’चेतावनी रा चूँगटिया’’ कहते हैं।
- केसरी बारहठ ने 1910 में गोपालसिंह खरवा के साथ मिलकर वीर भारत सभा नामक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की। 1914 में साधु प्यारेलाल हत्याकाण्ड में इन्हें मुख्य आरोपी बनाकर 20 साल की सजा हुई। केसरी सिंह को बिहार की हजारी बाग जैल में रखा गया। जैल में ही अपने पुत्र प्रतापसिंह बारहठ की शहादत की खबर सुनी तो वे बहुत प्रसन्न हुए और कहा भारत माता का पुत्र उसकी मुक्ति के लिए शहीद हो गया उसकी मुझे बहुत प्रसन्नता है।
- 1922 ई. में केसरी सिंह सपरिवार कोटा आ गये। कोटा के गुमानपुरा स्थित माणक भवन में आज भी इनके परिजन रहते हैं। केसरीसिंह जी का शेष जीवन कोटा में ही बीता था तथा वहाँ उनकी मृत्यु हो गई।
- केसरीसिंह जी के लिए रासबिहारी बोस ने उनके बारे में कहा कि ’’भारत मे एकमात्र ठाकुर केसरीसिंह बारहठ ही ऐेसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने भारत माता की दासता की शृंखलाओं को काटने के लिए अपने समस्त परिवार को स्वतंत्रता के युद्ध में झोंक दिया। केसरीसिंह जी बारहठ ने अपनी पुत्री को पत्र लिखे हुए कहते है – तुम्हें पता है देश की आजादी के राजसूय यज्ञ में तुम्हारे परिवार जनों की आहूति से देश के इस बडे़ भू-भाग मे क्रांति संभव हो सकी।
- केसरी जी को राजस्थान केसरी के नाम से जाना जाता है। इनके द्वारा रचित ग्रन्थ-रूठी रानी, प्रताप चरित्र, राजसिंह चरित्र, दुर्गादास चरित्र आदि ग्रन्थ हैं।
बालमुकुन्द बिस्सा
- बालमुकुन्द बिस्सा का जन्म 1903 में पीलवा गाँव डीडवाना तहसील जोधपुर राज्य में हुआ। डीडवाना वर्तमान में नागौर जिले में स्थित है। बिस्सा जी का जन्म एक पुष्करणा परिवार में हुआ।
- 1934 में बिस्सा जी ने राजस्थान चरखा एजेन्सी से खादी भण्डार की स्थापना की।
- 1940 में जोधपुर आन्दोलन का संचालन किया, तथा मौन साधक बन रचनात्मक कार्यों में संलग्न रहे। अपनी जवाहर खादी नामक दुकान को राजनैतिक कार्यकर्ताओं की मिलन स्थली बनाई।
- 1942 असहयोग आन्दोलन के दौरान जोधपुर में उतरदायी शासन की मांग की, इसी दौरान बिस्सा जी गिरफ्तार कर लिये गये। जेल में राजबन्दियों के दुव्र्यवहार व खराब भोजन देने के विरूद्ध बिस्सा जी ने जेल में ही भूख हड़ताल कर दी।
- 19 जून, 1942 को स्वास्थ्य खराब होने के कारण उनको जोधपुर के बिडम अस्पताल में भर्ती करवाया तथा इलाज के दौरान उनकी निधन हो गया।
रूपाजी एवं कृपा जी धाकड़
- मेवाड़ राज्य के बेंगूँ ठिकाने के किसानों पर हो रहे अत्याचारों के सिलसिले में बेंगूँ के निकट गाँव गोविन्दपुरा में रूपाजी व करपा जी नामक दो किसानों ने मिलकर अखण्ड़ पंचायत का आयोजन किया, इस सभा इन किसानों द्वारा माणिक्यालाल वर्मा द्वारा रचित गीत पंछीडा गाकर किसानों को उत्साहित तथा किसानों को संगठित करने का कार्य किया इसलिए मेवाड़ राज्य की फौज के अधिकारी टेंच के विरोधी बन गये तथा 13 जुलाई, 1923 को टेंच के नेतृत्व में किसानों की सभा में गोलियां चला दी तथा इस गोली बारी काण्ड में रूपा जी व कृपाजी शहीद हो गयें।
- गोविन्दपुरा गाँव में इन दो शहीदों की याद में प्रतिवर्ष मेला भरता है।
गोविन्द गिरी
- गोविन्द गिरी जी का जन्म 1858 में डूँगरपुर राज्य के बाँसिया ग्राम एक बणजारे के घर पर हुआ। आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण इनकी शिक्षा गाँव के पुजारी की सहायता से प्राप्त हुई।
- 1880 में दयानन्द सरस्वती से प्रेरणा लेकर जनजातियों की सेवा में लग गये। इन्होंने 1883 में सिरोही में सम्प सभा की स्थापना की तथा भगत आन्दोलन का सूत्रपात किया तथा इस आन्दोलन से जुड़े भील जाति के लोग अपनी झोपड़ी पर सफेद झण्ड़ी लगाते थे तथा धूनी और किसान की पूजा करते थे।
- 17 नवम्बर, 1913 को मानगढ़ की पहाड़ी पर सम्पसभा का आयोजन हो रहा था, जिसमें मेवाड़ भील कौर ने गोलियां चलाई थी, जिनमें लगभग 1500 भील मारे गये थे, इसे राजस्थान का जलियावालां हत्याकाण्ड कहते हैं।
- इस गोलीकाण्ड के बाद गुरू गोविन्द गिरी और उनकी पत्नी को गिरफ्तार कर लिया तथा फाँसी सजा हुई लेकिन आदिवासियों के विरोध के कारण उन्हें दस साल की सजा हुई। सजा काटने के बाद अपना शेष जीवन गुजरात के कम्बाई नामक स्थान पर बिताया।
रामकरण जोशी
- स्वतंत्रता सेनानी रामकरण जोशी का जन्म 2 अक्टूम्बर, 1912 को दौसा में हुआ तथा इन्होंने जयपुर प्रजामण्डल में 1939 से लेकर 1942 तक सक्रिय भूमिका निभाई।
- रामकरण जोशी जी ने बिजौलिया आन्दोलन, बेंगू आन्दोलन आदि किसान आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया।
- 1942 भारत छोड़ो आन्दोलन तथा नमक सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान उन्हें बंदी बनाकर जेल भेजा गया।
- 17 जनवरी, 1983 को स्वतन्त्रता सेनानी रामकरण जोशी का निधन हो गया।
गोकुललाल असावा
- स्वतंत्रता सेनानी श्री गोकुल लाल असावा का जन्म 2 अक्टूम्बर, 1901 को टोंक जिले के देवली कस्बे में एक माहेश्वरी परिवार में हुआ।
- असावा जी नमक सत्याग्रही तथा सक्रिय क्रांतिकारी एव लोकप्रिय नेता थे।
- असावाजी संविधान निर्मात्री परिषद् के सदस्य रहे है तथा 1948 को राजस्थान संघ के प्रधानमंत्री बनाये गये।
- 20 नवम्बर, 1981 को गोकुल लाल असावा जी का जयपुर में निधन हो गया।
हरिदेव जोशी
- हरिदेव जोशी का जन्म 17 दिसम्बर, 1921 को खादू गाँव (बांसवाड़ा) में हुआ।
- जोशी जी ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय योगदान दिया, ये कांग्रेस के कर्मठ कार्यकर्ता तथा राजस्थान के लोकप्रिय नेता थे।
भूरेलाल बप्पा
- इनका जन्म 1961 में हुआ तथा गाँधी दर्शन के प्रचारक एवं विश्व मंच के संस्थापक, मेवाड़ प्रजामण्डल के कर्णधार एवं कृषक आन्दोलन का संचालक।
बलवन्त सिंह मेहता
- इनका जन्म 8 फरवरी, 1900 को उदयपुर में हुआ। मेवाड़ प्रताप सभा के सक्रिय सदस्य एवं राजस्थान के लोकप्रिय नेता, स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय सहयोग किया।
स्वामी कुमारनन्द
- स्वामी कुमार का जन्म 15 अप्रेल, 1889 को रंगून में हुआ। 1910 में चीन जाने पर स्वामी जी डॉ. सेन यातसेन से मिले तथा कलकता आने पर गिरफ्तार कर लिये गये और नौ साल बाद जेल से मुक्त हुए।
- 1920 में स्वामी जी की नागपुर में श्री अरविन्द से भेंट हुई। सन् 1921 में स्वामी ब्यावर आये और एक विशाल किसान सम्मेलन किया। इस समय इनके पीछे पुलिस लगी हुई थी फिर भी इन्होंने अपना कार्य बंद नहीं किया। राजस्थान में इनके प्रवेश पर पाबन्दी थी फिर भी भेष बदलकर रियासत में जाते और लोगों से मिलते थे।
- 1948 में इन्हें गिरफ्तार कर अजमेर जेल में नजरबन्द रखा। इनका निधन 29 दिसम्बर, 1971 को हो गया।
हरिभाऊ उपाध्यय
- हरिभाऊ उपाध्यय का जन्म भौंरासा ग्राम (ग्वालियर राज्य) में 9 मार्च, 1893 को हुआ तथा इन्होंने औदुम्बर तथा नवजीवन आदि पत्रिकाओं का सम्पादन किया।
- उपाध्याय जी ने 1916 से 1919 तक महावीर प्रसाद द्विवेदी के साथ मिलकर सरस्वती नामक पत्रिका का सम्पादन किया।
- हरिभाऊ उपाध्याय ने 1925 में सस्ता साहित्य मण्डल की स्थापना की तथा 1927 में गाँधी आश्रम की हटुंडी (अजमेर) में स्थापना की।
- 1945 को आपने हटुंडी में महिला शिक्षा सदन की स्थापना की। 1952 में आप मुख्यमंत्री रहे तथा 1957 से 1965 तक आप राज्य मंत्री के पदभार पर रहे।
- 1966 को श्री उपाध्याय जी को पदम्श्री उपाधि से नवाजा गया।
- 25 अगस्त, 1972 में उपाध्याय जी का देहान्त हो गया।
रामनारायण चौधरी
- रामनारायण चौधरी का जन्म सीकर जिले के नीम का थाना गाँव में 1896 में हुआ था।
- बेंगू आन्दोलन को सफल नेतृत्व प्रदान किया तथा राजस्थान में जनजागरण के लिए नवीन राजस्थान नामक पत्र का प्रकाशन किया।
- 1932 में राजस्थान की हरिजन सेवक संघ शासन का कार्य भार संभाला। अजमेर में इनका निधन हो गया।
गोकुल भाई भट्ट
- गोकुल भाई भट्ट का जन्म सिरोही जिले के हाथल गाँव में 25 जनवरी, 1898 को हुआ।
- 1920 से 1939 गोकुल भाई भट्ट बम्बई की उपनगरी विलेपार्ले में रहे और सत्याग्रह, विदेशी वस्त्रों की होली जलाने व शराब बंदी जैसे आन्दोलनों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- आचार्य विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन में भी आपने सक्रिय योगदान किया।
- सन् 1972 और 1981 में मद्यनिषेध के लिये आमरण अनशन किया।
- 1982 में आपको जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- 23 जनवरी, 1939 को सिरोही प्रजामण्डल की स्थापना की, अक्टूबर, 1986 में आपका निधन हो गया।
भोगी लाल पाण्ड्या
- भोगी लाल पाण्ड्या का जन्म 13 नवम्बर, 1904 को डूँगरपुर जिले के सीमलवाड़ा ग्राम में हुआ। इन्होंने बागड़ सेवा मन्दिर नामक संस्था की स्थापना की जिसका उद्देश्य केवल शिक्षा से सम्बधित था। रियासत सरकार ने इस संस्था को बंद करवा दिया तथा पाण्ड्या जी ने इसके स्थान पर सेवा संघ संस्था की स्थापना की।
- 1944 में पाण्ड्या जी ने डूँगरपुर प्रजामण्डल की स्थापना की तथा भोगी लाल जी पाण्ड्या को आदिवासियों के मसीहा के नाम से जाना जाता है।
- वागड़ प्रदेश के गाँधी के नाम से विख्यात इस स्वतंत्रता सेनानी ने वागड़ क्षेत्र में हरिजन सेवा व पिछडे आदिवासी समाज के उत्थान हेतु कार्य किया।
- 1952 में सागवाड़ा से विधायक चुने जाने पर टीकाराम पालीवाल के मंत्रिमण्डल में आप उद्योग एवं चिकित्सा मन्त्री 1957 तक रहे।
- 1975 में भारत सरकार द्वारा पद्म-विभूषण से अलंकृत किया।
- 31 मार्च, 1981 को जयपुर में इनका निधन हो गया।
जोरावर सिंह बारहठ
- महान स्वतंत्रता सेनानी केसरी सिंह बारहठ के छोटे भाई थे। इनका जन्म 12 सितम्बर, 1883 को उदयपुर में हुआ।
- दिल्ली के महान क्रांतिकारी मास्टर अमीरचन्द के प्रमुख सहयोगी 12 दिसम्बर, 1912 को इन्होंने बुर्के में से लॉर्ड हार्डिंग के जुलूस पर चाँदनी चौक में बम फैंके। सरकार व रजवाड़े ने इन्हें पकड़ने की लाख कोशिश करने के बाद भी यह पकड़ में नहीं आयें।
- कोटा में 1939 में आपकी मृत्यु हुई यह मृत्युपर्यन्त अंग्रेजों के हाथ नहीं आये। कोटा के अतरलिया की हवेली में इनका निधन हो गया। ये राजस्थान के चन्द्रशेखर आजाद कहलाते है।
मोती लाल तेजावत
- मोती लाल जी का जन्म 1887 में उदयपुर जिले की झाड़ोल तहसील के कौल्यारी ग्राम में हुआ।
- ये भील जाति के थे। वे भीलों के बाबा के नाम से प्रसिद्ध थे। ये भील व अन्य जनजातियों पर हो रहें अत्याचारों को देखकर क्षुब्ध थे। इस कारण इन्होंने 1920 में मेवाड़ के मातृकुण्डिया (चितौड़गढ़, मेवाड़ का हरिद्वार) नामक स्थान पर जाकर एकी आन्दोलन चलाया।
- 1923 में इन्होंने नीमड़ा गाँव में लाग-बागों व बेगार के विरूद्ध एक विशाल सम्मेलन बुलाया, मेवाड़ सेना ने सम्मेलन की एकता को कुचलने के लिए 1200 भीलों की हत्या कर दी। इस नरसंहार में मोतीलाल तेजावत जी स्वयं घायल हो गये। लेकिन हार नहीं मानी और संघर्ष जारी रखा।
- उदयपुर एवं चितौड़गढ़ से लोक सभा के सदस्य तथा राजस्थान खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे।
- संयुक्त राजस्थान के प्रथम प्रधानमंत्री 11 अप्रेल, 1948 को बने।
- 5 सितम्बर, 1963 भीलवाड़ा में निधन हो गया।
साधु सीताराम दास
- साधु सीताराम दास का जन्म 1884 में भीलवाड़ा जिले के बिजौलिया ग्राम में हुआ। लोकमान्य तिलक इनके प्रेरणा स्त्रोत थे।
- साधु सीताराम जी ने किसानों के शोषण और दयनीय स्थिति को काफी गहराई से देखा था, इन्होंने बिजौलिया किसान आन्दोलन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, ये किसानों के हित के लिए अनेक बार जेल गये। आरम्भ में 1897 से बिजौलिया किसान आन्दोलन का नेतृत्व 1916 तक इन्होनें ही किया था।
नानक भील
- नानक जी भील 1922 को बूँदी के किसान आन्दोलन में झण्डा गीत प्राण मित्रों भले ही गँवाना, पर झण्ड़ा न नीचे झुकाना गीत गाते समय ए.पी. इरार हुसैन के नेतृत्व वाली पुलिस की गोलियों से शहीद हो गये। इनकी स्मृति में माणिक्यलाल वर्मा ने अर्जी नामक शीर्षक से गीत लिखे थे।
- इन्होंने बेंगू आन्दोलन में भी सहायोग दिया तथा ये अच्छा गायक होने के कारण गीतों के माध्यम से जन चेतना करते थे।
गोपाल सिंह खरवा
- गोपाल सिंह खरवा का जन्म अजमेर जिले के खरवा ग्राम में हुआ। राजपूताने में वीर भारत सभा के नाम एक गुप्त संगठन सक्रिय था। इस संगठन में बारहठ के साथ गोपाल सिंह खरवा ने भी महत्वपूर्ण कार्य किये।
- इस संगठन के माध्यम से राजपूतानें के राजपूतों को इस सभा में बड़े पैमाने पर जोड़ना ही नहीं बल्कि उनमें स्वतंत्रता की भावना को उत्पन्न कर क्रांतिकारियों का साथ देकर अपना राज्य स्थापित करने की महत्वाकांक्षा जागृत कर दी।
- सशस्त्र क्रांति 21 फरवरी, 1915 को निश्चित की गई। राजपूताने में राव गोपालसिंह खरवा, दामोदर दास राठी को ब्यावर और विजय सिंह पथिक को अजमेर-नसीराबाद पर कब्जा करने का कार्य सौंपा गया था। लेकिन इस योजना की भनक अंग्रेजों को लग जाने के कारण यह प्रयास क्रियान्वित नहीं हो सका।
- कुछ समय बाद खरवा जी को गिरफ्तार कर टॉड़गढ़ किले नजरबन्द कर दिया गया तथा वहाँ से फरार होकर ये भूमिगत हो गये, लेकिन अन्त में किशनगढ़ में इनकी पहचान हो गई तथा वापस नजरबन्द कर दिया गया तथा 1920 को इन्हें मुक्त करा दिया गया।
- गोपाल सिंह खरवा जी का मुख्य कार्य क्रांतिकारियों को हथियार उपलब्ध कराना था।
- गोपाल सिंह खरवा जी अनुशीलान समिति जुड़े थे। इन्होंने राजपूताने में वीर भारत सभा का गठन किया, इनका निधन 1939 में हुआ।
- भारत सरकार के संचार मंत्रालय ने 30 मार्च, 1989 में इनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया।
सागर मल गोपा
- महान स्वतंत्रता सेनानी सागरमल गोपा जी का जन्म 3 नवम्बर, 1900 में जैसलमेर में हुआ।
- राजस्थान के ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिनकी जन्मस्थली ही कर्मस्थली मृत्युपर्यन्त रहीं है।
- सागरमल गोपा जी ने जैसलमेर में राजनैतिक चेतना उप्तन्न करने के साथ-साथ शिक्षा प्रसार पर विशेष महत्व दिया। जैसलमेर के तत्कालीन महारावल जवाहरसिंह के अत्याचारों का कड़ा विरोध किया सागरमल गोपा प्रतिबन्धित प्रजामण्डल के नेता थे। इसलिए इनका प्रवेश जैसलमेर एवं हैदराबाद राज्य में प्रतिबन्धित था क्योंकि इनकी गतिविधियाँ आक्रोशित करने वाली थी लेकिन इन्होंने इसकी कोई परवाह नहीं की तथा निरन्तर अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् के अधिवेशनों में भाग लिया।
- सागर मल गोपा जी ने आजादी के दीवाने तथा जैसलमेर में गुण्डाराज नामक पुस्तकें लिखी तथा इसकी प्रतियाँ बटवाई।
- सागरमल गोपाजी को 24 मई, 1941 को राजद्रोह के जूर्म में जेल में डालकर इन पर अमानवीय अत्याचार किया। (इन पर केरोसीन डालकर जलाया गया) इस कारण 4 अप्रेल, 1946 को इनका निधन हो गया।
मास्टर आदित्येन्द्र
- मास्टर आदित्येन्द्र का जन्म भरतपुर जिले के कैथून गाँव में 24 जून, 1907 को हुआ।
- मास्टर आदित्येन्द्र अध्यापन के साथ-साथ छात्रों में राष्ट्रीय भावना को जागृत करने का अथक प्रयास किया।
- इन्होंने भारत छोडो आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया तथा जिसके कारण 11 अगस्त, 1942 को इन्हे गिरफ्तार कर लिया गया।
- 1967 को राजस्थान विधान सभा के सदस्य रहे।
जुगलकिशोर चतुर्वेदी
- जुगलकिशोर चतुर्वेदी का जन्म 4 नवम्बर, 1904 को साँख ग्राम (मथुरा) में हुआ पढ़ाई समाप्त होने के बाद आपने शिक्षक पद पर कार्य किया।
- 1930 में अपनी नौकरी से त्याग पत्र देकर भरतपुर प्रजामण्डल की मान्यता के लिए सत्याग्रह में भाग लेते हुए सक्रिय राजनैतिक जीवन की शुरूआत की।
- 1940 में आप भरतपुर नगरपालिका से सदस्य बने। भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया तथा 10 अगस्त, 1942 में गिरफ्तार हो गये। 1943 में ब्रज जया प्रतिनिधि सभा में चुने गये।
- 1947 में भरतपुर में बेगार विरोधी आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान किया।
- 10 मार्च, 1948 को जब मत्स्य संघ की स्थापना की गई उसमें आप उप-प्रधानमंत्री चुने गये। तथा पूर्ण एकीकरण के बाद प्रदेश कांग्रेस महामंत्री पद पर रहें और जयनारायण व्यास के मंत्रिमण्डल में आप को मंत्री बनाया गया।
- ज्वाला प्रसाद शर्मा
- ज्वाला प्रसाद शर्मा मूलतः अजमेर निवासी थे। क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आने के बाद राष्ट्रीय भावना जाग्रत हुई।
- 1931 में रल्वे खजाना लूटने की योजना बनाई लेकिन प्रशासन को इसकी भनक लग जाने के कारण ये सफल नहीं हो सके। हमेशा क्रांतिकारियों की मदद के लिए तैयार रहते थे। परिणामस्वरूप क्रांतिकारियों की गतिविधियों पर नजर रखने वाले पुलिस अधिकारी प्राणनाथ डोगरा तथा सरकारी भेदिये पर अपने प्राणों को खतरे में डालते हुए गोलियाँ चला दी।
- 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में वे जेल गये लेकिन कुछ दिन बाद ही फरार हो गये। और स्वाधीनता तक वे भूमिगत रहे।
पं. नरोतम लाल जोशी
- पं. नरोतम लाल जोशी जी का जन्म 16 दिसम्बर, 1916 को झुन्झुनूँ में हुआ।
- जयपुर प्रजामण्डल के तत्वाधान में 1938 में जन आन्दोलन के प्रवर्तक रहें।
- 1939 में आपने शेखावाटी जकात आन्दोलन को न केवल नेतृत्व प्रदान किया बल्कि सामन्तों द्वारा कृषकों का जो शोषण किया जाता था उसके विरूद्ध भी आवाज उठाई।
- 1943 में जयपुर राज्य में नगरपालिका सुधार हेतु गठित समितियों में सक्रिय योगदान दिया।
- 1945 में आप संविधान निर्मात्री समिति के सदस्य भी रहे।
- 1951 में आप राजस्थान मंत्रिमण्डल में से वे विधि एवं निर्वाचन विभागों के मंत्री रहे।
- 1952 एवं 1957 में झुन्झुनू सीट से निर्वाचित हुए और विधानसभा अध्यक्ष के पद को गौरवान्वित किया।
शोभाराम कुमावत
- शोभाराम का जन्म 7 जनवरी, 1914 को अलवर में हुआ।
- 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय वकालत छोडकर रामचन्द्र उपाध्याय और कृपादयाल माथुर के साथ सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हुए।
- 1942 में महात्मा गाँधी आमरण अनशन पर बैठे तो उनके साथ शोभाराम जी ने भी 13 दिन तक उपवास किया तथा अलवर के प्रत्येक आन्दोलन में सक्रिय रहे।
- 18 मार्च, 1948 को निर्मित मत्स्य संघ का इन्हें प्रधानमंत्री मनोनित किया गया। वृहत राजस्थान संघ में हीरालाल शास्त्री के मन्त्रिमण्डल में इन्हें मंत्री बनाया गया। इसके बाद भी सांसद, विधायक और मंत्री बरकतुल्लाखाँ के मन्त्रिमण्डल में रहें।
- शोभाराम कुमावत अन्त तक राष्ट्रवादी नीतियों के प़क्ष में रहे। इनका निधन सन् 23 मार्च, 1984 में हुआ।
नेतराम गौरीर
- नेतराम गौरीर का जन्म 1892 में हुआ।
- नेतराम जी गौरीर आर्य समाजी विचारधारा के होने के कारण अपनी राजनैतिक गतिविधियों के साथ-साथ कन्या शिक्षा के क्षेत्र में भी इन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया।
- 1938 में इन्होंने शेखावाटी के गाँवों में घूम-घूम कर किसानों को संगठित किया ओर उनमें चेतना जागृत की।
स्वामी गोपालदास
- स्वामी गोपालदास जी की जन्मस्थली चुरू थी।
- स्वामी गोपालदास जी आर्य समाज के सिद्धान्तों में विश्वास रखते थे, इसलिए वेदों की सर्वोच्चता को मानते थे।
- बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने इन्हें राज्य के विरूद्ध षड्यंत्र रचने के आरोप में लम्बी अवधि के लिए बन्दी बना लिया था जहाँ जनवरी, 1939 में इनकी मृत्यु हो गई।
रमेश स्वामी
- रमेश स्वामी का जन्म 1904 में भूसावर (भरतपुर) में हुआ था।
- रमेश स्वामी विद्यार्थी जीवन से ही आर्यसमाज में जाने के कारण इनकी रूचि वैदिक धर्म की ओर अधिक हो गई।
- 1925 में इन्हें सार्वदेशिक सभा को वैदिक धर्म व हिन्दी प्रचार हेतु विदेशों मे भेजा गया।
- भरतपुर प्रजामण्डल के गठन हेतु इन्होंने प्रचार किया तथा साथ ही सत्याग्रह में भी भाग लिया।
- 1947 में बेगार विरोधी आन्दोलन में सक्रिय भाग लेते समय उनका देहवसान हो गया।
दयानन्द सरस्वती (आर्य समाज)
- स्वामी दयानन्द सरस्वती जी का जन्म 1824 में गुजरात के मोरवी प्रदेश के टकरा गाँव में हुआ था। इनके बचपन का नाम मूलशंकर था। राज्य में 1857 की क्रांति के बाद राजनैतिक चेतना जागृत करने वाले पहले व्यक्ति स्वामी दयानन्द सरस्वती थे।
- उदयपुर जिले में स्थित पिछोला झील के जगमंदिर में सत्यार्थ प्रकाश का अधिकांश भाग लिखा गया।
- दयानन्द सरस्वती ने 10 अप्रेल, 1875 को बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की तथा राजस्थान में आर्य समाज की स्थापना 13 फरवरी, 1881 को अजमेर में हुई।
राजस्थान में दयानन्द सरस्वती का आगमन
पहली बार:- स्वामी जी सर्वप्रथम 1865 में करौली के शासक मदनपाल के आग्रह पर राजस्थान आए।
दूसरी बार:- दूसरी बार स्वामी जी मेवाड़ के महाराणा सज्जनसिंह के आग्रह पर 11 अगस्त, 1882 को उदयपुर पहुँचे। उदयपुर में स्वामी जी को गुलाब बाग स्थित नौलखा महल में ठहराया गया।स्वामी जी के सानिध्य में उदयपुर में 27 फरवरी, 1883 को परोपकारी सभा की स्थापना हुई तथा इस सभा का सभापति मेवाड़ के महाराणा सज्जनसिंह को बनाया गया।
तीसरी बार:- दयानन्द सरस्वती जी बार जोधपुर के प्रधान मंत्री सर प्रताप सिंह व जोधपुर महाराजा जसवन्त सिंह द्वितीय के आग्रह पर मार्च, 1883 को जोधपुर पहुँचे। जोधपुर में भरे दरबार में दयानन्द जी ने वैश्या गमन के दोष बताते हुए महाराजा जसवंत सिंह की नन्हीं जान के प्रति आसक्ति पर उन्हें फटकार लगाई तथा ऐसा कहा जाता है। नन्हीं जान ने इस अपमान का बदला लेने के लिए गौड़ मिश्र (जगन्नाथ) नामक रसोइये के द्वारा दयानन्द जी को दूध में विष दिलवा दिया। इससे उनका स्वास्थ्य खराब होने कारण अजमेर के लिए रवाना हुए। अजमेर के पास ही 30 अक्टूम्बर, 1883 को उनका देहान्त हो गया। दयानन्द सरस्वती पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ’’स्वराज्य’’ शब्द का प्रयोग किया।
वैदिक साहित्य के प्रसार के लिए दयानन्द जी ने 1877 में वाराणसी में वैदिक यंत्रणालय की स्थापना की जिसे बाद में अजमेर स्थानान्तरित कर दिया गया।
तो ये थी अपकी राजस्थान के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी से संबंधित एक छोटी सी जानकारी ।आशा करता हु आपको ये राजस्थान के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी से संबंधित जानकारी पसंद आई होगी।अगर राजस्थान के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी से संबंधित जानकारी अच्छी लगे तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करे।आगे भी ऐसी जानकारी प्राप्त करने के लिए वेबसाइट को बुकमार्क कर ले।