Friday, November 15, 2024
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पादपों के विभिन्न अंग और इनके कार्य एंव प्रकार | Various parts of plants and their functions and types

पादपों के विभिन्न अंग (पादपों के महत्वपूर्ण अंग,Various parts of plants,पादपों में संरचनात्मक संगठन) :- इस पोस्ट के माध्यम से आज हम पादपों के विभिन्न अंग,जड़ ( Root ),जड़ का रूपांतरण,तना ( Stem ),तने के कार्य, तने का रूपान्त्रण,पत्ती ( Leaf ),प्ररूपी पत्ती के भाग,पत्ती के प्रकार,पर्णविन्यास आदि के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे। आप अच्छे से इनके बारे में अध्ययन करें। ताकि आगे आने वाले विभिन प्रतियोगी परीक्षाओ जैसे राजस्थान रीट (Rajasthan REET),IIT, NIT, AIIMS Exam आदि में आप अच्छे नम्बर प्राप्त कर सको। तो आइये देखते है पादपों के विभिन्न अंग और इनके कार्य एंव प्रकार (Padap ke vibhinn ang) के बारे में एक महत्वपूर्ण जानकारी।

पादपों के विभिन्न अंग

जिस तरह मनुष्य शरीर के अंग होते है उसी प्रकार पौधो के भी अंग होते है। इन सभी अंग के अपने अपने कार्य होते है। पादपों में संरचनात्मक संगठन , जड़ , तना , पत्ती , इनका रूपांतरण , प्ररूपी पत्ती के भाग ,पत्ती के प्रकार, पादपों में संरचनात्मक संगठन होता है। पादपों के कुछ अंग जमीन के ऊपर तो कुछ अंग /भाग जमीन के निचे होते है। पादप के विभिन अंग निम्नलिखित है :-

  • जड.
  • तना
  • पत्तियां
  • फूल और फल

जड / जड़ क्या होती है / Root

पौधे का वह हिस्सा जो भूमि के अंदर छिपा हुआ होता है, जड़ या मूल कहलाता है। जड़ें मिट्टी के कणों को परस्पर बांधे रखती हैं और पौधे को भूमि पर स्थिर रखती हैं । ये पौधे के पोषण के लिए जरूरी खनिज-लवणों को भूमि से अवशोषित करके तनों के माध्यम से पहुंचाती हैं।

  • प्राथमिक जड़ :- प्राथमिक जड़ मिट्टी में उगती हैं , जो द्विबीज पत्री पादपों में मूलांकुर के लम्बे होने से बनती हैं |
  • द्वितीयक व तृतीयक जड़ :- इनमें पार्श्वीय जड़ होती हैं |

जड़तंत्र किसे कहते हैं

हम देखते हैं कि पौधों की जड़ सिर्फ एक नहीं होती। या तो यह मुख्य जड़ और सहायक छोटी-छोटी जड़ों में बंटी होती है। या फिर एक पौधे से बहुत सी मुख्य जड़े होती है। इन्हीं को सामूहिक रूप से जड़तंत्र कहा जाता है।

जड़तंत्र के प्रकार

जड़तंत्र दो प्रकार के होते हैं। ये निम्नलिखित है

  • मूसलाधार जड़तंत्र :- इसमें पौधे के आधार से एक मोटी मुख्य जड़ निकलती हैं। इस मुख्य जड़ से कई छोटी छोटी जड़ें निकलती हैं। फिर इन छोटी-छोटी जड़ों से महीन-महीन ढेरों जड़े निकलती हैं। इस प्रकार की संरचना को मूसलाधार जड़ कहते हैं। उदाहरण के लिए मुली, गाजर, आम, नीम आदि।
  • रेशेदार जड़तंत्र :- जब पौधे के आधार से या किसी अन्य हिस्से से एक साथ एक जैसे आकार वाली जड़ें निकलती हैं। तो इन्हें रेशेदार जड़तंत्र कहते हैं। जैसे गेहूं, चावल, मक्का, घास आदि की जड़ें रेशेदार होती हैं।

जड़ों के विशेष कार्य

कुछ जड़ें अपने सामान्य कार्य पौधों का आधार बनने और पोषक तत्व ग्रहण करने के अलावा भी काम करती हैं। ये अन्य कार्य ही विशेष कार्य कहलाते हैं। इन विशेष कार्यों में दो कार्य माने जाते हैं।
1. भोजन का संग्रहण।
2. मुख्य जड़ों की सहायक बनना।

जड़ का रूपांतरण

  • संचयी जड़ :- आलू, शकरकंद, मूली, गाजर, चुकंदर आदि की जड़़ें फूली हुई होती हैं। ये रूपांतरित जड़ें होती हैं, जिनमें खाद्य सामग्री संग्रहीत होती हैं, और ये मानव के लिए भोजन का स्रोत बनती हैं। एेसी जड़ों को संचयी जड़ें कहते हैं।
  • सहायक जड़ :–  गन्ना, मक्का, ज्वार आदि पौधों की जड़ें ज्यादा लंबी नहीं होतीं, जबकि इनका तना बहुत लंबा होता है। एेसी स्थिति में लंबे तने को सहारा देने के लिए पौधों के पोर यानी तने की गांठ में से लंबी-लंबी सुतली जैसी जड़ें निकलती हैं और पौधे के अगल-बगल मिट्टी में प्रवेश कर उसको चारों तरफ से सहारा देती हैं। इन जड़ों को सहायक जड़ें कहते हैं।
  • स्तंभ जड़ :- बरगद के वृक्ष में से उसकी बड़ी-बड़ी डालों में से सुतली जैसी संरचनाएं निकलकर लटकती हैं। ये जमीन में प्रवेश करके मोटे खंभे जैसा रूप धारण कर लेती हैं और पेड़ को ज्यादा क्षेत्रफल में फैलाव करने में मदद करती हैं। एसी जड़ों को स्तंभ जड़ें कहते हैं।

तना ( Stem )

व्रक्ष के ऊपरी भाग को तना कहते हैं | शाखाएँ , पत्तीयाँ , फूल तथा फल व्रक्ष के तने पर स्थित होते हैं | अंकुरित बीज के भ्रूण के प्रांकुर से तना विकसित होता हैं | तने में जहां से पत्तियाँ निकलती हैं , use गाँठ कहते हैं | तने का रंग प्रायः हरा होता हैं | और बाद में वह काष्ठीय तथा गहरा भूरा दिखाई देता हैं |

तने के कार्य

तने के कार्य निम्नलिखित है :-

  • तने का कार्य पत्ती , फूल तथा फल को संभाले रखना तथा शाखाओं को फैलाना हैं |
  • तना पानी , खनिज लवण और प्रकाश संश्लेषी पदार्थों का संवहन करने में मद्त करता हैं |
  • तना भोजन संग्रह करने , कायिक प्रवर्धन करने में सहायता प्रदान करते हैं |
  • जब परिस्थितियाँ अनुकूल ना हो तब तना व्रद्धि के लिए चिर कालिक अंग का कार्य करते हैं |

तने का रूपान्त्रण

तना विभिन्न कार्यो को सम्पन्न करने के लिए खुद को रूपांतरित कर लेता हैं |

  • भूमिगत तने भोजन संचय करने के लिए रूपांतरित हो जाते हैं , जैसे – आलू , अदरक, हल्दी, जमीकन्द और अरबी के तने |
  • पशुओं से पौधे को बचाने के लिए बहुत से पौधों में काँटे होते हैं , जैसे – सिट्रस , बोगेनविया |
  • तने के प्रतान पतले और कुंडलित होते हैं , जो कक्षीय कली से निकलते हैं |

पत्ती ( Leaf )

पत्तियां पोधें का रसोईघर होती हैं। ये सूरज की रोशनी, वायुमंण्डल से कार्बनडाईआक्साइड और मिट्टी से जड द्वारा प्राप्त जल व लवण के इस्तेमाल से भोजन बनाती हैं। सूरज के प्रकाश से भोजन बनाने की इस प्रकिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं। प्रकाश संश्लेषण में पौधे आक्सीजन गैस को निष्कासित करते हैं जिससे हमारा वायुमण्डल शुध्द रहता है। पत्तियां जो भोजन बनाती हैं उसे पौधे के अन्य भागों जेसे जड़, तना, पत्तियां और फल व फूलों में संचित कर लिया जाता है। जडों के द्वारा अवशोषित अतिरिक्त जल को पत्तियां वाष्प के रूप में बाहर निकाल देती हैं। पत्तियां मूलत: हरे रंग की होती हैं। पत्तियों में हरा रंग पर्णहरिम या क्लोरोफिल नाम के एक वर्णक के कारण होता है।

प्ररूपी पत्ती के भाग

  • पर्णाधार :-पर्णाधार की सहायता से पत्तियाँ तने से जुड़ी होती हैं।
  • पर्णवृन्ततल्प ( पल्वाइनस ) :- एक बीजपत्री में पर्णाधार , फ़ैल जाता हैं , जिससे तने को आंशिक व पूर्ण ढक लेता हैं , पर्णाधार कुछ लेग्यूमी तथा कुछ अन्य पौधों में फूल जाता हैं । जिसे पर्णवृन्ततल्प कहते हैं ।
  • पर्णवृन्त :- पर्णवृन्त पत्ती की सजावट इस तरह से करता हैं , इसे अधिकतम सूर्य की प्राप्ती हो सके | ताजी हवा पत्ती को मिल सके । इसके लिए पर्णवृन्त स्तरिका को हिलाता हैं । स्तरिका पत्ती का फैला हुआ भाग होती हैं । स्तरिका के बीच में एक स्पष्ट शिरा होती हैं , जिसे मध्य शिरा कहते हैं।

पत्ती के प्रकार

  1. सरल पत्ती
  2. संयुक्त पत्ती

पर्णविन्यास

पर्णविन्यास में तने व शाखा पर पत्ती विन्यस्त क्रम में रहती हैं | पर्णविन्यास तीन प्रकार का होता हैं |

  1. एकांतर
  2. सम्मुख
  3. चक्करदार

पत्ती का रूपांतरण

  1. भोजन बनाने के अतिरिक्त पत्ती को अन्य कार्यों के लिए रूपांतरित होना पड़ता हैं ।प्रतान में जैसे – मटर ऊपर चढ़ने के लिए , शूल ( कांटों ) रक्षा के लिए जैसे – कैक्टस में परिवर्तित हो जाते हैं ।
  2. भोजन का संचय प्याज तथा लहसुन की गूदेदार पत्तियों में होता हैं ।
  3. कुछ पौधों में पत्तियाँ छोटी तथा अल्पआयु होती हैं जैसे – ऑस्ट्रेलियन अकेसिया , इनका पर्णवृन्त फैल कर हरा हो जाता हैं और भोजन बनाने का कार्य करता ।
  4. पत्ती घड़े के आकार में रूपांतरित हो जाती हैं । कुछ कीटाहारी पादपों में जैसे – घटपर्णी , वीनस फ्लाई ट्रेप ।

फूल एवं फल 

फूल और फल पौधे का सबसे आकर्षक भाग होता है। फूल रंग बिरंगे और खुश्बूदार होते हैं जो कि तितलियों, भौरों, मधुमक्खियों को अपनी और आकर्षित करते हैं। फूल के सबसे बाहर की हरी पंखुडियों को बाह्य दल कहते हैं। जब फूल कली की अवस्था में होता है तो यह फूल की रक्षा करते हैं। फूल पौधे की वंशवृध्दि के लिये फल और बीच का निमार्ण करते हैं।

फूल की रंगीन पखुडियों को दल कहते हैं। फूल के बीच में नर अंग पुंकेसर और मादा अंग स्त्रीकेसर होते हैं। फूल से फल बनते हें और फलों से बीज बनते हैं। बीज से नये पौधे बन जाते हैं। फूल और फल पौधे की वंशवृध्दि के लिये उपयोगी अंग होते हैं।

फल का निर्माण अण्डाशय (Ovary) से होता है, हालांकि परिपक्व अण्डाशय को ही फल कहा जाता है, क्योंकि परिपक्व अण्डाशय की भित्ति फल-भित्ति (Pericarp) का निर्माण करती है। पुष्प के निषेचन के आधार पर फल के मुख्यतः दो प्रकार होते हैं –

  • सत्य फल (True Fruit) – यदि फल के बनने में निषेचन प्रक्रिया द्वारा पुष्प में मौजूद अंगों में केवल अण्डाशय ही भाग लेता है, तो वह सत्य फल होता है। जैसे – आम
  • असत्य फल (False Fruit) – फल के बनने में जब कभी अण्डाशय के अतिरिक्त पुष्प के अन्य भाग – बाह्यदल , पुष्पासन आदि भाग लेते हैं, तो वह असत्य फल के वर्ग में आता है। जैसे – सेब के बनने में पुष्पासन भाग लेता है। फलों व उनके उत्पादन के अध्ययन को पोमोलॉजी (Pomology) कहते हैं।

सरल फल

जब किसी पुष्प के अण्डाशय से केवल एक ही फल बनता है, तो उसे सरल फल कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-

  • सरस फल
  • शुष्क फल

सरस फल

ये रसदार, गूदेदार व अस्फुटनशील होते हैं। सरस फल भी छः प्रकार के होते हैं।

  1. अष्टिल फल (Drupe) – नारियल, आम, बेर, सुपारी आदि। .
  2. पीपो (Pepo) – तरबूज, ककड़ी, खीरा, लौकी आदि।
  3. हेस्पिरीडियम (Hespiridium) – नीबू, संतरा, मुसम्मी आदि।
  4. बेरी (Berry) – केला, अमरूद, टमाटर, मिर्च, अंगूर आदि।
  5. पोम (Pome) – सेब, नाशपती आदि।
  6. बैलटा (Balaista) – अनार।

शुष्क फल – ये नौ प्रकार के होते हैं।

  1. कैरियोप्सिस (Caryopsis) – जौ, धान, मक्का, गेहूं आदि।
  2. सिप्सेला (Cypsella) – गेंदा, सूर्यमुखी आदि।
  3. नट (Nut) – लीची, काजू, सिंघाड़ा आदि।
  4. फली (Pod) – सेम, चना, मटर आदि।
  5. सिलिक्युआ (Siligua) – सरसों, मूली आदि।
  6. कोष्ठ विदाकर (Locilicidal) – कपास, भिण्डी आदि।
  7. लोमेनटम (Lomentum) – मूगफली, इमली, बबूल आदि
  8. क्रेमकार्य (Cremocorp) – सौंफ, जीरा, धनिया आदि।
  9. रेग्मा (Regma) – रेड़ी।

पुंजफल (Etaerio) – इसके अन्तर्गत एक ही बहुअण्डपी पुष्प के ‘वियुकाण्डपी अण्डाशयों से अलग-अलग फल बनता है, लेकिन वे समूह के रूप में रहते हैं। पुंजफल भी चार प्रकार के होते हैं।

  1. बेरी का पुंजफल (Etaerio of berries) – शरीफ
  2. अष्तिल का पुंजफल – रसभरी
  3. फालिकिन का पुंजफल – चम्पा, सदाबहार, मदार आदि
  4. एकीन का पुंजफल – स्ट्राबेरी, कमल आदि ।

संग्रहित फल (Composite Fruits) – जब एक ही सम्पूर्ण पुष्पक्रम के पुष्पों से पूर्ण फल बनता है, तो उसे संग्रहित/संग्रथित फल कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं –

  1. सोरोसिस (Sorosis): जैसे – शहतूत, कटहल, अनानास आदि।
  2. साइकोनस (Syeonus): जैसे – गूलर, बरगद, अंजीर आदि

फल और उसके खाने योग्य भाग

फलखाने योग्य भाग
सेबपुष्पासन
नाशपातीमध्य फलभित्ति
लीचीपुष्पासन
नारियलएरिल
अमरूदभ्रूणपोष (Endosperm)
पपीताफलभित्ति
मूंगफलीबीजपत्र एवं भ्रूण
काजूबीजपत्र
बेरबाह्म एवं मध्य फलभित्ति
अनाररसीले बीजचोल
अंगूरफलभित्ति
कटहलसहपत्र परिदल एवं बीज
गेहूंभ्रूणपोष
धनियापुष्पासन एवं बीज
शरीफाफल भित्ति
सिंघाड़ाबीजपत्र
नींबूरसीले रोम
बेलमध्य एवं अन्तः फलभित्ति
टमाटरफलभित्ति एवं बीजाण्डसन
शहतूतसहपत्र, परिदल एवं बीज

पौधे व उनके अंगों के बारें में जरूरी बातें

  • जड़ें पौधे को भूमि में स्थिर रखती हैं।
  • पौधों को जडें अपने मूलरोमों द्वारा मिट्टी से जल एवं खनिज लवणों को अवशोषित करती है।
  • तना जडों द्वारा अवशोषित जल तथा खनिज लवणों को पौधे के प्रत्येक भाग तक पहुॅचाता है।
  • तना पत्तियों द्वारा निर्मित भोजन को पौधे के विभिन्न अंगो तक लेकर जाता है।
  • पत्तियों का हरा रंग क्लोरोफिल या पर्णहरिम नामक वर्णक के कारण होता है।
  • पौधे कार्बनडाई आक्साइड को अवशोषित करते हैं और आक्सीजन बाहर निकालते हैं।
  • पत्तियों की मुख्यत निचली सतह पर असंख्य छिद्र (पर्णरंध्र) पाये जाते हैं जिनकी मदद से वे श्वसन क्रिया और वाष्पोत्सर्जन करते हैं।
  • फूल पौधे का सबसे सुंदर, आकर्षक और रंगीन भाग होता है।
  • फूल में बाह्य दल, पुंकेसर तथा स्त्रीकेसर पाये जाते हैं।
  • फूलों से फल बनते हैं और फल से बीज। बीजों से नये पौधे जन्म लेते हैं।
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