Monday, September 16, 2024
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संधि किसे कहते है, संधि की परिभाषा, प्रकार व उदाहरण

संधि किसे कहते है (Sandhi kise kahte hai,संधि की परिभाषा) :- नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट के माधयम से आज हम बात करने वाले है हिंदी व्याकरण (Hindi Vyakran) के एक बहुत अच्छे टॉपिक के बारे में जो है संज्ञा (Sandhi)। इसमें संधि किसे कहते हैं परिभाषा, visarg sandhi, व्यंजन संधि किसे कहते हैं, 20 examples of swar sandhi in hindi, विसर्ग संधि किसे कहते हैं, vyanjan sandhi in hindi, sandhi trick, दीर्घ संधि किसे कहते हैं, sandhi worksheets in hindi, संस्कृत में संधि किसे कहते हैं, sandhi sanskrit, संधि उदाहरण, sandhi chart in hindi, संधि को इंग्लिश में क्या कहते हैं, sandhi in hindi pdf download, व्यंजन संधि के कितने भेद है आदि से सम्बंधित विस्तृत जानकारी दी है।

संधि किसे कहते है संधि का अर्थ

संधि का शाब्दिक अर्थ – संधि दो शब्दों से मिलकर बना है – सम् + धि। जिसका अर्थ होता है ‘मिलना ‘। जब दो शब्द मिलते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाती हैं उसे संधि कहते हैं अथार्त जब दो शब्द आपस में मिलकर कोई तीसरा शब्द बनती हैं तब जो परिवर्तन होता है , उसे संधि कहते हैं।

उदहारण :-

  • यथा + उचित =यथोचित
  • यशः +इच्छा=यशइच्छ
  • अखि + ईश्वर =अखिलेश्वर
  • आत्मा + उत्सर्ग =आत्मोत्सर्ग
  • महा + ऋषि = महर्षि ,
  • लोक + उक्ति = लोकोक्ति

संधि के प्रकार | भेद कितने है

वर्णों के आधार पर संधि के तीन भेद है। ये निम्नलिखित है  :-

  1. स्वर संधि
  2. व्यंजन संधि
  3. विसर्ग संधि

स्वर संधि | स्वर संधि किसे कहते है

जब स्वर के साथ स्वर का मेल होता है तब जो परिवर्तन होता है उसे स्वर संधि कहते हैं। हिंदी में स्वरों की संख्या ग्यारह होती है। बाकी के अक्षर व्यंजन होते हैं। जब दो स्वर मिलते हैं जब उससे जो तीसरा स्वर बनता है उसे स्वर संधि कहते हैं।

उदहारण :-

विद्या + अर्थीविद्यार्थी
सूर्य + उदय सूर्योदय
मुनि + इंद्र मुनीन्द्र 
कवि + ईश्वर कवीश्वर
महा + ईश महेश

स्वर संधि के भेद | प्रकार

स्वर संधि के पांच भेद होते हैं। यह निम्नलिखित है :-

  1. दीर्घ संधि
  2. गुण संधि
  3. वृद्धि संधि
  4. यण संधि
  5. अयादि संधि

दीर्घ स्वर संधि

संधि करते समय अगर (अ, आ) के साथ (अ, आ) हो तो ‘आ‘ बनता है, जब (इ, ई) के साथ (इ , ई) हो तो ‘ई‘ बनता है, जब (उ, ऊ) के साथ (उ ,ऊ) हो तो ‘ऊ‘ बनता है। जब ऐसा होता है तो हम इसे दीर्घ संधि कहते है।

अ+अ =आअत्र+अभाव =अत्राभाव
कोण+अर्क =कोणार्क
अ +आ =आशिव +आलय =शिवालय
भोजन +आलय =भोजनालय
आ +अ =आविद्या +अर्थी =विद्यार्थी
लज्जा+अभाव =लज्जाभाव
आ +आ =आविद्या +आलय =विद्यालय
महा+आशय =महाशय
इ +इ =ईगिरि +इन्द्र =गिरीन्द्र
इ +ई =ईगिरि +ईश =गिरीश
ई +इ =ईमही +इन्द्र =महीन्द्र
ई +ई =ईपृथ्वी +ईश =पृथ्वीश

गुण स्वर संधि

यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘इ’ या ‘ई ‘ ‘उ’ या ‘ऊ ‘ और ‘ऋ’ आये ,तो दोनों मिलकर क्रमशः ‘ए’, ‘ओ’ और ‘अर’ हो जाते है। जैसे-

अ +इ =एदेव +इन्द्र=देवन्द्र
अ +ई =एदेव +ईश =देवेश
आ +इ =एमहा +इन्द्र =महेन्द्र
अ +उ =ओचन्द्र +उदय =चन्द्रोदय
अ+ऊ =ओसमुद्र +ऊर्मि =समुद्रोर्मि
आ +उ=ओमहा +उत्स्व =महोत्स्व
आ +ऊ = ओगंगा+ऊर्मि =गंगोर्मि

वृद्धि स्वर संधि

यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए’ या ‘ऐ’आये, तो दोनों के स्थान में ‘ऐ’ तथा ‘ओ’ या ‘औ’ आये, तो दोनों के स्थान में ‘औ’ हो जाता है। जैसे-

अ +ए =ऐएक +एक =एकैक
अ +ऐ =ऐनव +ऐश्र्वर्य =नवैश्र्वर्य
आ +ए=ऐमहा +ऐश्र्वर्य=महैश्र्वर्य
सदा +एव =सदैव
अ +ओ =औपरम +ओजस्वी =परमौजस्वी
वन+ओषधि =वनौषधि
अ +औ =औपरम +औषध =परमौषध
आ +ओ =औमहा +ओजस्वी =महौजस्वी
आ +औ =औमहा +औषध =महौषध

यण स्वर संधि

जब ( इ , ई ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ य ‘ बन जाता है , जब ( उ , ऊ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ व् ‘ बन जाता है , जब ( ऋ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ र ‘ बन जाता है। यण संधि के तीन प्रकार के संधि युक्त्त पद होते हैं। (1) य से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए। (2) व् से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए। (3) शब्द में त्र होना चाहिए।

इ +अ =ययदि +अपि =यद्यपि
इ +आ = याअति +आवश्यक =अत्यावश्यक
इ +उ =युअति +उत्तम =अत्युत्तम
इ + ऊ = यूअति +उष्म =अत्यूष्म
उ +अ =वअनु +आय =अन्वय
उ +आ =वामधु +आलय =मध्वालय
उ + ओ = वोगुरु +ओदन= गुवौंदन
उ +औ =वौगुरु +औदार्य =गुवौंदार्य
ऋ+आ =त्रापितृ +आदेश=पित्रादेश

अयादि स्वर संधि

 यदि ‘ए’, ‘ऐ’ ‘ओ’, ‘औ’ के बाद कोई भिन्न स्वर आए, तो (क) ‘ए’ का ‘अय्’, (ख ) ‘ऐ’ का ‘आय्’, (ग) ‘ओ’ का ‘अव्’ और (घ) ‘औ’ का ‘आव’ हो जाता है। जैसे-

ने +अन =नयन
चे +अन =चयन
शे +अन =शयन
श्रो+अन =श्रवन (पद मे ‘र’ होने के कारण ‘न’ का ‘ण’ हो गया)
 नै +अक =नायक
गै +अक =गायक
 
 पो +अन =पवन 
 श्रौ+अन =श्रावण
पौ +अन =पावन
पौ +अक =पावक
श्रौ+अन =श्रावण (‘श्रावण’ के अनुसार ‘न’ का ‘ण’)

व्यंजन संधि

व्यंजन से स्वर या व्यंजन के मेल से उत्पत्र विकार को व्यंजन संधि कहते है।
या
व्यंजन के दूसरे व्यंजन या स्वर से मेल को व्यंजन संधि कहते हैं।
या
व्यंजन का व्यंजन से या किसी स्वर से मेल होने पर जो परिवर्तन होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं। 
उदाहरण :-
शरत् + चंद्र = शरच्चंद्र

नियम:

1. किसी वर्ग के पहले वर्ण जैसे क्, च्, ट्, त्, प् का मेल किसी वर्ग के तीसरे या चौथे वर्ण या य्, र्, ल्, व्, ह या किसी स्वर से हो जाए तो, क् को ग् । च् को ज् । ट् को ड् एवं प् को ब् हो जाता है।
उदाहरण:

क् + ग = ग्ग 

दिक् + गज = दिग्गज

क् + ई = गी 

वाक + ईश = वागीश

च् + अ = ज् 

अच् + अंत = अजंत 

ट् + आ = डा 

षट् + आनन = षडानन

प + ज + ब्ज 

अप् + ज = अब्ज



2. यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण जैसे क्, च्, ट्, त्, प् का मेल न् या म् वर्ण से हो तो उसकी जगह पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। उदाहरण: –

क् + म = ं 

वाक् + मय = वाङ्मय 

च् + न = ं 

अच् + नाश = अंनाश

ट् + म = ण् 

षट् + मास = षण्मास 

त् + न = न् 

उत् + नयन = उन्नयन

प् + म् = म् 

अप् + मय = अम्मय



3. यदि त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या किसी स्वर से हो जाए तो वहां द् हो जाता है। उदाहरण: –

त् + भ = द्भ 

सत् + भावना = सद्भावना 

त् + ई = दी

जगत् + ईश = जगदीश

त् + भ = द्भ 

भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति 

त् + र = द्र 

तत् + रूप = तद्रूप

त् + ध = द्ध 

सत् + धर्म = सद्धर्म


4. यदि त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् एवं ल तो वहां पर ल् हो जाता है। 
उदाहरण: –

त् + च = च्च 

उत् + चारण = उच्चारण 

त् + ज = ज्ज 

सत् + जन = सज्जन

त् + झ = ज्झ 

उत् + झटिका = उज्झटिका 

त् + ट = ट्ट 

तत् + टीका = तट्टीका

त् + ड = ड्ड 

उत् + डयन = उड्डयन 

त् + ल = ल्ल 

उत् + लास = उल्लास


5. यदि त् का मेल यदि श् से हो तो वहां त् को च् एवं श् का छ् बन जाता है। 
उदाहरण:-

त् + श् = च्छ 

उत् + श्वास = उच्छ्वास 

त् + श = च्छ 

उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट

त् + श = च्छ 

सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र


6. यदि त् का मेल यदि ह् से होतो है तो वहां त् का द् एवं ह् का ध् हो जाता है। 
उदाहरण :-

त् + ह = द्ध 

उत् + हार = उद्धार 

त् + ह = द्ध 

उत् + हरण = उद्धरण

त् + ह = द्ध 

तत् + हित = तद्धित


7. यदि स्वर के बाद यदि छ् वर्ण आ जाए तो वहां छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है। उदाहरण: –

अ + छ = अच्छ 

स्व + छंद = स्वच्छंद 

आ + छ = आच्छ 

आ + छादन = आच्छादन

इ + छ = इच्छ 

संधि + छेद = संधिच्छेद 

उ + छ = उच्छ 

अनु + छेद = अनुच्छेद


8. म् के बाद क् से म#2381; तक कोई व्यंजन हो तो वहां म् अनुस्वार में बदल जाता है। 
उदाहरण :-

म् + च् = ं 

किम् + चित = किंचित 

म् + क = ं 

किम् + कर = किंकर

म् + क = ं 

सम् + कल्प = संकल्प 

म् + च = ं 

सम् + चय = संचय

म् + त = ं 

सम् + तोष = संतोष 

म् + ब = ं 

सम् + बंध = संबंध

म् + प = ं 

सम् + पूर्ण = संपूर्ण


9. यदि म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है। जैसे –

म् + म = म्म 

सम् + मति = सम्मति 

म् + म = म्म 

सम् + मान = सम्मान



10. यदि म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन होने पर म् का अनुस्वार हो जाता है। 
उदाहरण –

म् + य = ं 

सम् + योग = संयोग 

म् + र = ं 

सम् + रक्षण = संरक्षण

म् + व = ं 

सम् + विधान = संविधान 

म् + व = ं 

सम् + वाद = संवाद

म् + श = ं 

सम् + शय = संशय 

म् + ल = ं 

सम् + लग्न = संलग्न

म् + स = ं 

सम् + सार = संसार


11. यदि ऋ, र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता।
उदाहरण –

र् + न = ण 

परि + नाम = परिणाम

र् + म = ण 

प्र + मान = प्रमाण


12. स् से पहले अ, आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए तो स् को ष हो जाता है। जैसे –

भ् + स् = ष 

अभि + सेक = अभिषेक 

नि + सिद्ध = निषिद्ध 

वि + सम = विषम

विसर्ग संधि

विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन मेल से जो विकार होता है, उसे विसर्ग संधि कहते है।

  • मन: + अनुकूल = मनोनुकूल
  • नि: + पाप =निष्पाप

नियम

1. विसर्ग के साथ च या छ के मिलन से विसर्ग के जगह पर ‘श्’बन जाता है। विसर्ग के पहले अगर ‘अ’और बाद में भी ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे , पाँचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का ओ हो जाता है।

उदहारण :-

  • मनः + अनुकूल = मनोनुकूल ;
  • मनः + बल = मनोबल
  • दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
  • निः + छल = निश्छल
  • तपश्चर्या = तपः + चर्या
  • अन्तश्चेतना = अन्तः + चेतना

 2.  विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है। विसर्ग के साथ ट, ठ या ष के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जाता है।

  • धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
  • चतुः + षष्टि = चतुष्षष्टि
  • निः + छल = निश्छल

 3.  विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का र या र् हो जाता ह। विसर्ग के साथ ‘श’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर भी ‘श्’ बन जाता है।

  • दुः + शासन = दुश्शासन
  • निः + शुल्क = निश्शुल्क
  • चतुश्श्लोकी = चतुः + श्लोकी
  • निः + आहार = निराहार
  • निः + धन = निर्धन

4. विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग स् बन जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ के  अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तथा विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण क, ख, प, फ में से कोई भी हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जायेगा।

निः + कलंक = निष्कलंक

  • दुः + कर = दुष्कर
  • चतुः + पथ = चतुष्पथ
  • निष्काम = निः + काम
  • बहिष्कार = बहिः + कार
  • नमः + ते = नमस्ते
  • दुः + साहस = दुस्साहस

5. विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। विसर्ग के साथ त या थ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जायेगा।

  • अन्त: + तल = अन्तस्तल
  • दु: + तर = दुस्तर
  • निस्तेज = निः + तेज
  • मनस्ताप = मन: + ताप
  • निः + रोग = निरोग

6.  विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ष हो जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद क, ख, प, फ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग भी ज्यों का त्यों बना रहेगा।

  • प्रातः + काल = प्रात: काल
  • वय: क्रम = वय: क्रम
  • तप: पूत = तप: + पूत
  • अन्त: करण = अन्त: + करण

अपवाद

  • भा: + कर = भास्कर
  • पुर: + कार = पुरस्कार
  • बृह: + पति = बृहस्पति
  • तिर: + कार = तिरस्कार
  • चतुः + पाद = चतुष्पाद

7. यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘इ’ व ‘उ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग का तो लोप हो जायेगा साथ ही ‘इ’ व ‘उ’ की मात्रा ‘ई’ व ‘ऊ’ की हो जायेगी।

  • नि: + रस = नीरस
  • नि: + रोग = नीरोग
  • नीरज = नि: + रज
  • चक्षूरोग = चक्षु: + रोग

8. विसर्ग के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता। विसर्ग के साथ ‘स’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जाता है।

  • नि: + सन्देह = निस्सन्देह
  • नि: + स्वार्थ = निस्स्वार्थ
  • निस्संतान = नि: + संतान
  • मनस्संताप = मन: + संताप
  • अंतः + करण = अंतःकरण

 9.  विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ, ग, घ, ड॰, ´, झ, ज, ड, ढ़, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह में से किसी भी वर्ण के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ बन जायेगा।

मन: + अभिलाषा = मनोभिलाषा

  • सर: + ज = सरोज
  • यश: + धरा = यशोधरा
  • अध: + भाग = अधोभाग
  • मन: + रंजन = मनोरंजन
  • मनोहर = मन: + हर
  • तपोभूमि = तप: + भूमि
  • यशोदा = यश: + दा

अपवाद

  • पुन: + अवलोकन = पुनरवलोकन
  • पुन: + उद्धार = पुनरुद्धार
  • अन्त: + द्वन्द्व = अन्तद्र्वन्द्व
  • अन्त: + यामी = अन्तर्यामी

 10.  विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ के अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर विसर्ग का लोप हो जायेगा तथा अन्य कोई परिवर्तन नहीं होगा।

उदहारण –

  • अत: + एव = अतएव
  • पय: + आदि = पयआदि

इस लेख में संधि किसे कहते हैं परिभाषा, visarg sandhi, व्यंजन संधि किसे कहते हैं, 10 examples of swar sandhi in hindi, विसर्ग संधि किसे कहते हैं, vyanjan sandhi in hindi, sandhi trick, दीर्घ संधि किसे कहते हैं, sandhi worksheets in hindi, संस्कृत में संधि किसे कहते हैं, sandhi sanskrit, संधि उदाहरण, sandhi chart in hindi, संधि को इंग्लिश में क्या कहते हैं, sandhi in hindi pdf download, व्यंजन संधि के कितने भेद है। यदि जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करे।आगे भी ऐसी जानकारी प्राप्त करने के लिए वेबसाइट को बुकमार्क कर ले।

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